नदी के है दो किनारे,कभी हम साथ मिलते नहीं |
साथ चलते है लगातार, एक दूजे से बोलते नहीं ||
साथ लिये थे फेरे,साथ खाई थी कसमे हमने |
आज आलम है कि,हम साथ उठते बैठते नहीं ||
साथ किये थे मंत्रो का उच्चारण,फेरो के साथ |
होते हुये जीब भी,हम एक दूजे से बोलते नहीं ||
पूछ रहा है सागर,क्या रंजिस है हम दोनों में |
चलकर हजारो कोस साथ मुझमे गिरते नहीं ||
किश्ती भी कोशिश करती है,किनारों को मिलाने में |
यही तो बिडम्बना है,हम किसी की मानते नहीं ||
शुक्रिया करो कोरोना का,हमे मजबूर कर दिया |
घर बैठे है साथ हम,घर के बाहर निकलते नहीं ||
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम