लागाव अपने शहर का
बहुत अलग होता है।
जिंदगी जीने का ठंग
शहर में अलग होता है।
भूल जाते है अपने
उच्चपद को गाँव में।
क्योंकि सभी के प्रति
सम्मान का भाव रहता है।।
खेलकून्द और पढ लिखकर
लायक होकर बड़े बने।
उस क्षैत्र से लगाव
मनमें अधिक रहता है।
बहुत यादे और घटनाएं
दिल जहान में आती है।
जो बचपन को फिर से
जिंदा कर देती है।।
समय की चका चौन्ध भी
इसे धूंदला नहीं कर पाती।
और दिलो की आत्मिता
दिलसे निकल नहीं पाती।
लाख चाह कर भी हम
अपनो से दूर नहीं होते।
और मातृभूमि के कर्जको
कभी उतार भी नही पाते।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)