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सताये हुए हैं,फिर तुम क्यों सताते हो,
बिन बात के,मुझे तुम क्यों सताते हो।
मालूम है सब कुछ ये नई बात तो नहीं,
फिर ये बात मुझसे क्यों छिपाते हो।
जल रहे है बिन आग के हम किसलिए,
पहले ही जले है और क्यों जलाते हो।
जमाना हो गया है,अब प्यास बुझाओ मेरी,
प्यास लगी है मुझे,औरो की क्यों बुझाते हो।
कोशिश की थी मैंने,दो दिलों को जोड़ने की,
टूट गए जब दिल,फिर तुम क्यों मिलाते हो।।
आर के रस्तोगी,
गुरुग्राम
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