मोदी की खामोशी के मायने

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mukesh sing
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगर आज प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हैं,तो वो सिर्फ अपनी आक्रामक शैली की वजह से हैंl सपनों के सौदागर नरेन्द्र मोदी ने आम चुनाव से पहले देश की जनता को बहुत सारे सपने दिखाए थे और उनसे वादा किया था कि वे उन सपनों को साकार रुप भी देंगे। पता नहीं,उन वादों का क्या हुआ? उनमें से कितने पूरे किए गए..पर इन सबसे इतर देश में आज निराशा का एक माहौल दिख रहा है। कल तक जो लोग `मोदी-मोदी` जपते नहीं थकते थे,वे आज मोदी से नाराज हैं। आम चुनाव से पहले सोशल मीडिया के जरिए मोदी का प्रचार करने वाले अधिकतर युवा आज अपने आदर्श नरेन्द्र मोदी से लगातार सवाल पूछ रहे हैं कि,उनकी चिर-परिचित आक्रामकता आखिर कहां खो गई है? वे `गुजरात के शेर` नरेन्द्र मोदी से शांत-सौम्य मनमोहन क्यों बन रहे हैं?
     दरअसल पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में देश के 25 वीर जवानों की जान चली गई। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। अभी ये मामला शांत हुआ भी नहीं था कि,अचानक पाकिस्तान के कायर लड़ाकों द्वारा भारत के दो जाबांज सैनिकों की बर्बर हत्या ने देश को फिर से झुलसा दिया। आए-दिन पाकिस्तान की ओर से किए जा रहे `सीजफायर` के उल्लंघन तथा देश के भीतर सेना को निशाना बनाकर किए जा रहे आतंकी हमलों में देशभक्त जवानों को खो रही गुस्साई जनता का पारा इस बात से और अधिक चढ़ गया है कि,ये सारी घटनाएं देश में मोदी के कार्यकाल में घट रही हैंl इतना सब होने के बाद भी सरकार कोई ठोस निर्णय लेने से घबरा रही है। लोगों में इस बात का भी गुस्सा है कि,मोदी के मंत्री भी पहले की   सरकारों की तरह बस निंदा का झुनझुना बजाकर अपना दायित्व पूरा करने में जुटे रहते हैं।
 पाकिस्तान ने एक बार फिर से हमारे जवानों के सिर काटने का दुस्साहस किया है,पर हमारे जोशीले प्रधानमंत्री की खामोशी ने देशवासियों को हैरत में डाल रखा है। देश की जनता की आखों में आज हताशा है। वे निराश हैं और बड़ी बेसब्री से ये जानना चाहते हैं कि आखिर ७ आरसीआर में ऐसी कौन-सी मजबूरी है जो हर मुद्दे पर बड़े-बड़े भाषण देनेवाले सुवक्ता व हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे व्यक्ति को देशहित से जुड़े एक गंभीर विषय पर मौन रहने को बाध्य कर रहा है? मोदी जैसे एक सशक्त नेता की चुप्पी से लोग आज इतने संशय में हैं कि,वे समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर ७ आरसीआर की हवा में ऐसा क्या है,जिसने देश के सबसे सक्षम प्रधानमंत्री को भी लाचार बना दिया हैl कभी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर जिन विषयों को लेकर नरेन्द्र मोदी ने हमला बोला था,आज वे उन विषयों पर खुद भी चुप्पी साधे बैठे हैं। अपनी खामोशी से नरेन्द्र मोदी ने भी अब उसी परंपरा को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है,जिससे नाराज होकर जनता ने उन्हें देश की कमान सौंपी है।
  `नोटबंदी` के दौरान प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में लोगों को विश्वास दिलाया था कि नोटबंदी के बाद देश से नक्सलवाद और आतंकवाद का कहर समाप्त हो जाएगा,पर वास्तव में ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसके विपरीत पिछले चंद महीनों के अंतराल में ही देश के अलग-अलग हिस्सों में हुए हमलों में हमारे ४८ से अधिक जवानों ने अपनी जान गवां दी हैl  इसका ताजा उदाहरण है सुकमा और जम्मू कश्मीर का पुंछ सेक्टर,जहां हाल ही में हुए नक्सली हमले और पाकिस्तानी सेना की कायराना हरकतों से हमारे कई जवानों ने अपनी जान गंवाई है। इतना ही नहीं,बल्कि इस सरकार के कार्यकाल में तो छुट्टी पर गए सेना के जवानों पर भी हमला हो रहा है और उन्हें बड़ी निर्ममता से मारा जा रहा है। इतना सब-कुछ होने के बाद भी हमारी सरकार बस मूक दर्शक बनी हुई है।
 नागरिकों की सुरक्षा व सेना के स्वाभिमान की रक्षा का वादा करके सत्ता पर काबिज हुई मोदी सरकार के कार्यकाल में ही सैनिकों पर सबसे अधिक हमले हुए हैं। इस सरकार के शासनकाल में जहां एक ओर देश के जवान आतंकियों की गोलियों का शिकार बन रहे हैं,तो दूसरी ओर उन्हें आतंकियों के समर्थक पत्थरबाजों का भी सामना करना पड़ रहा है। अब तो देश में हालात ऐसे बन गए हैं कि देश की सीमा से लेकर भीतरखाने तक में हमारे जवान कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। उन पर देश के हर हिस्से में घात लगाकर हमला किया जा रहा है,जिसके फलस्वरूप देश ने अपने कई अनमोल रत्नों को खो दिया है। इतनी सारी दुर्घटनाओं के बावजूद अब तक हमारी सरकार ने सेना के स्वभिमान और मनोबल की रक्षा के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया है और न ही इस मुद्दे को लेकर हमारे प्रधानमंत्री ने ही अब तक कोई गंभीर बात कही है।
प्रधानमंत्री की इस खामोशी ने उनके चाहनेवालों को भी अब नाराज करना शुरू कर दिया है। तभी तो कभी सोशल मीडिया में मोदी का जयगान करते नहीं थकनेवाले उनके भक्त भी अब उन पर हमलावर बन रहे हैं। वे सोशल मीडिया के जरिए उनसे लगातार ये सवाल पूछ रहें हैं कि आखिर ऐसी कौन-सी मजबूरी ने उन्हें घेर रखा है जिसके कारण उन्हें भी मनमोहन सिंह का प्रतिरूप बनना पड़ रहा है? लोग उनसे तीखे सवाल कर रहें हैं और पूछ रहे हैं कि जब उन्हें भी तुष्टिकरण की ही राजनीति करनी है तो फिर क्यों न कांग्रेस को ही फिर से चुन लिया जाए? अपने प्रिय प्रधानमंत्री के विरुद्ध लोगों के मन में उबल रहे गुस्से का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि,किस तरह एक शहीद की विधवा को अपने गुस्से का इजहार करने के लिए प्रधानमंत्री को एक ५६ इंच की चोली भेजना पड़ी है।
लोगों में मोदी को लेकर आक्रोश है तो इस बात को लेकर भी कि,वे अपने पुराने रूख से पलट रहे हैं। वे अपनी आक्रामकता खो रहे हैं। वे ये भूल रहे हैं कि,उन्हें जनता ने सिर्फ कॉंग्रेस या विरोधियों से लड़ने के लिए नहीं चुना है,उन्हें जनता ने चुना है तो देश के दुश्मनों को सबक सिखाने के लिए। भ्रष्टाचार की अभ्यस्त देश की जनता ने उन्हें प्रधानमंत्री सिर्फ इसलिए नहीं बनाया है कि वो भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहती है,बल्कि उन्हें ये दायित्व सौंपा गया है तो देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए। ऐसे में देश की सुरक्षा व स्वाभिमान से जुड़े मुद्दों पर उनका यूं खामोश रहना देश की जनता को अखरता है। लोग उनसे ठोस और कड़े निर्णयों की उम्मीद लगाए बैठे हैं और उन्हें अपने दूसरे कार्यकाल के लिए जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना होगा। उन्हें देश के दुश्मनों को अब ये संदेश देना होगा कि देश की बागडोर अब सक्षम हाथों में है और ये सरकार देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए कोई भी कदम उठाने को तैयार है। फिर चाहे इसके लिए सरकार को जेएनयू के गद्दारों को सबक सिखाना पड़े,या कश्मीरी पत्थरबाजों को सही राह पर लाना पड़े..देश की सरकार हर परिस्थिति से निपटने को तैयार है। ख़ास तौर पर पाकिस्तान जैसे पड़ोसी को तो उसके घर में घुसकर उसकी औकात बताने में हमारी सरकार पूरी तरह सक्षम है।
                                                                                # मुकेश सिंह
परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl 
शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक  विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन  ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।