“पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी” द्वारा आयोजित “राष्ट्रीय हिंदी विकास सम्मेलन ,2017, 26 , 27, और 28 मई को लेखन मिलन शिविर में मुझे पहली बार शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । मेघालय राज्य के इतने करीब असम राज्य का निवासी होकर भी मुझे मालूम नहीं था कि हर साल मेरे नजदीक साहित्य का इतना बड़ा मेला लगता है । पहली बार ज्ञात करवाई राजस्थान के बाल साहित्यकार राजकुमार जी जैन ‘राजन’ ने । उस शिविर में ही राजकुमार जी जैन ‘राजन’ के बाल कहानी “मन के जीते जीत” का मेरे द्वारा किया गया असमिया में अनुवाद “मनर जयेइ जय” का विमोचन किया गया । उस बार भारतवर्ष के 18 राज्यों से पधारे हुए 131 साहित्यकारों को सुन पायी तथा हर एक से रूबरू हो पाई । मुझ जैसी अंकुर के लिए यह बहुत बड़ी बात थी । उस शिविर में मिले आदरणीय उर्मी दीदी, डाॅ.अकेलाभाइ सर जी, राजकुमार जैन राजन सर जी, अलका दीदी, कीर्ति दीदी, डाॅ.अरुणा दीदी,मंजु लामा जी, आशा जी, आशा पाण्डे दीदी, प्रतिभा प्रसाद माँ, प्रेमलता ठाकुर दीदी, दीपिका जी के साथ साथ देश के कोने-कोने में से पधारे हुए कई जाने-माने साहित्यकार। साथ ही मेघालय के दर्शनीय स्थल – चैरापुंजी, एलिफैंटा गुफा, नांख्रां पार्क, यूको पार्क और शिलांग शहर ने मुझे आकर्षित किया । तब से पता नहीं क्यों मुझे कभी कुछ मौका मिलते ही सारे काम छोड़कर शिलांग के लिए रवाना हो जाती हूँ । शिलांग का सौंदर्य मुझे बार-बार अपनी ओर खींचता है । हर दिन अपेक्षा में रहती हूँ कि कब मई महीना आए और मैं लेखन मिलन शिविर के लिए जा सकूं । साल 2018 के 25, 26 और 27 मई को फिर जाने का सौभाग्य प्राप्त किया । उर्मी दीदी का प्यार , सम्मेलन में पधारे लोग तथा पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी के सभी लोगों का प्रोत्साहन और प्यार तीन दिन में तीन जन्मों तक के लिए भर देते हैं। कुछ लोग मुझे अक्सर कहते हैं शिलांग के कार्यक्रम में पिकनिक मनाने क्यों जाते हो ! किनारे पर रहकर पानी में तैरने का मजा वो क्या जाने! सच में इस लेखन मिलन शिविर का हिस्सा बने बिना इस शिविर का महत्व क्या है सोच भी नहीं सकते है ।
इस बार जब कार्यक्रम करने के लिए जगह नही मिलने की वजह से कार्यक्रम टालने या रद्द करने की नौबत आ गई थी तब मेरी आँखे भर आई और मैं ईश्वर से प्रार्थना की थी कि जैसे भी करके यह कार्यक्रम हो । उन दिनों अकेला सर के साथ साथ सम्पूर्ण टीम तनाव में आ गई थी। लेकिन जहाँ चाह है वहाँ राह है । सम्पूर्ण टीम के अथक परिश्रम और साथ ही कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों की प्रार्थना असर लाई, आखिर में पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी को कार्यक्रम करने के लिए सीमा सुरक्षा बल ग्यारहवीं पलटन मौपट, मेघालय में मंच सहित कार्यक्रम करने के हाॅल और सीमा सुरक्षा बल के समूह पदाधिकारियों के सहयोग प्राप्त हुआ साथ ही साहित्यकारों को आवासीय इन्तेजाम करने के लिए पैंथोरवा जैसे सुन्दर जगह पर गोल्फ पाइन गेस्ट हाउस जैसे सुव्यवस्थित स्थान मिल गया । इस बार मुझे और नया अनुभव प्राप्त हुआ । शायद और कभी ऐसा सौभाग्य प्राप्त होगा या नहीं। पता नहीं कि प्रकृति के बीच अपनों से दूर हमारे देश के सीमा सुरक्षा के लिए हरदम तैनात रहने वाली ग्यारहवीं पल्टन के संरक्षित आवासिक तथा कार्य स्थल देखने को मौका मिला । इतना साफ-सुथरा, शांत परिवेश, समय का सदुपयोग के साथ -साथ उनके हाथों स्वादिष्ट भोजन खाने को मिलना मेरा सौभाग्य रहा । केवल इतना ही नहीं उनके हाथों शांति एवं शृंखलित ढंग से खाना परोसना आदि देख कर मैं हमारे सुरक्षा वीरों के लिए हजारों सलाम करती हूँ ।अकादमी द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में सीमा सुरक्षा बल के इन्सपेक्टर साहिबा द्वारा उत्तराखंड के लोकगीत और एक इन्सपेंक्टर साहब द्वारा किया गया हरियाणवी लोक नृत्य देखकर मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करती हूँ कि हमारे देश की संतानों ने माँ की सुरक्षा के साथ-साथ अपनी लोकसंगीत तथा लोकनृत्य को भी जिन्दा रखा है । सच में मेरा भारत महान है, इसी कारण भारत भूमि में विविधता में एकता है । इस कार्यक्रम में शामिल होकर मेरे लिए गंगा नहाने वाली बात हो गई । सुबह जब गोल्फ पाइन गेस्ट हाउस से हमें सीमा सुरक्षा बल के बस में कार्यक्रम स्थल तक ले जाते थे, मेघालय के पहाड़ी उतार चढ़ाव राहों के किनारों में हरे-भरे वादियां और रात को लौटते वक्त राहों के किनारे पर ढलान के घरों में जलते हुए टिमटिमाते बिजली बत्तियाँ, जैसे हम आकाश में तारों के बीच सफर कर रहे हैं ।
इतने सुखद पलों में मैं कभी-कभी दुखी हो जाती थी । डाॅ.अकेला सर जी, इस बार पंजीयन करते समय बोल रहे थे कि इस बार यह कार्यक्रम शिलांग में अन्तिम होगा, आगे जाकर कहीं ओर कार्यक्रम होगा । यह कार्यक्रम अगर शिलांग में आखिरी हो तो शायद ही आगे जाकर हम कभी प्राकृतिक मनोरम नजारों के बीच कभी एक साथ छोटे भारत की सैर कर पायेंगे । जब सभी के सहमति के साथ डाॅ.अकेला सर जी यह कार्यक्रम अगले साल पुनः शिलांग में करने का निर्णय लिया तब मेरे मन को और दोगुनी खुशी मिली । अगले साल फिर से सम्पूर्ण भारत को पहाड़ी वादियों के बीच सुनने तथा देखने का मौका मिलने की आशा और चाह को लेकर इस बार के सुखद अनुभूतिअनुभूतियों को मन में समेट कर 27 मई 2019 सोमवार को सुबह लगभग 8 बजे मुम्बई, मध्य प्रदेश, छत्तिसगढ़ तथा हमारे प्रदेश के साहित्यकारों के साथ घर के लिए रवाना हुई । ईश्वर से यहीं प्रार्थना है कि अगला वर्ष जल्दी आए और लेखन मिलन शिविर का मेला शिलांग में लगा दे और हम नाचते गाते साहित्य सागर में डुबकी लगाने के साथ साथ उर्मी दीदी, डाॅ.अकेला सर जी, अरूणा जी, मंजु जी, बोबिता जी, आशा जी , जयमती बाइदेउ, योगेश जी, जगबीर जी, विजय जी, देवचंद्र जी और पंकज जी के साथ बस में नाचते-गाते मेघालय की सैर करके हम जिन्दगी जीने का मजा उठाएँ ।
#वाणी बरठाकुर ‘विभा’
परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का साहित्यिक उपनाम-विभा है। आपका जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम) है। वर्तमान में शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम) में ही रहती हैं। असम राज्य की श्रीमती बरठाकुर की शिक्षा-स्नातकोत्तर अध्ययनरत (हिन्दी),प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)है। आपका कार्यक्षेत्र-तेजपुर ही है। लेखन विधा-लेख, लघुकथा,बाल कहानी,साक्षात्कार, एकांकी आदि हैं। काव्य में अतुकांत- तुकांत,वर्ण पिरामिड, हाइकु, सायली और छंद में कुछ प्रयास करती हैं। प्रकाशन में आपके खाते में काव्य साझा संग्रह-वृन्दा ,आतुर शब्द,पूर्वोत्तर के काव्य यात्रा और कुञ्ज निनाद हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिका में सक्रियता से आती रहती हैं। एक पुस्तक-मनर जयेइ जय’ भी आ चुकी है। आपको सम्मान-सारस्वत सम्मान(कलकत्ता),सृजन सम्मान ( तेजपुर), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग)सहित सरस्वती सम्मान (दिल्ली )आदि हासिल है। आपके लेखन का उद्देश्य-एक भाषा के लोग दूसरे भाषा तथा संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इसी से भारतवर्ष के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है।