न गम का अब साया है,
न खुशी का माहौल है।
चारो तरफ बस एक,
घना सा सन्नाटा है।
जो न कुछ कहता है,
और न कुछ सुनता है।
बस दूर रहने का,
इशारा सबको करता है।।
हुआ परिवर्तन जीवन में,
इस कोरोना काल में।
बदल दिए विचारों को,
उन रूड़ी वादियों के।
जो घरकी महिलाओं को,
काम की मशीन समझते थे।
और घरके कामो से सदा,
अपना मुँह मोड़ते थे।।
घर में इतने दिन रहकर,
समझ आ गये घरके काम।
घर की महिलाओं को
कितना होता है काम।
जो समयानुसार करती है,
और सबको खुश रखती है।
पुरुषवर्ग एकही काम करते है,
और उसी पर अकड़ते है।।
देखकर पत्नी की हालत,
खुद शर्मिदा होने लगा।
और बटाकर कामों में हाथ,
पतिधर्म निभाना शुरू किया।
और पत्नी का मुरझाया चेहरा,
कमल जैसा खिल उठा।
और मुझे सच्चे अर्थों में,
घरगृहस्थी समझ आ गया।।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन मुम्बई