दोहा-
मेघपुष्प पानी सलिल, आपः पाथः तोय।
लिखूँ वन्दना वरुण की,निर्मल मति दे मोय।।
चौपाई-
प्रथम गणेश शारदे वंदन।
वरुण देव,पाठक अभिनंदन।।१
जल से जीवन यह जग जाना।
जल मे प्राणवायु को माना।।२
जल से जीव और परजीवी।
जल से वसुधा बनी सजीवी।।३
जल से अन्न अन्न से जीवन।
जल बिन कैसे हों धरती वन।।४
जल है भाग तीन चौथाई।
जल की महिमा सके न गाई।।५
जल गागर में हो या सागर।
तन और धरती भाग बराबर।।६
धरती जल या वरषा जल हो।
नीर जरूरत तो पल पल हो।।७
प्राणी तन मे रक्त महातम।
सृष्टि हित मे नीर है आतम।।८
वरुण देव हैं पूज्य हमारे।
धरा चुनरिया रंगत डारे।।९
देव इन्द्र बादल बन बरसे।
वर्षा जल से वसुधा सरसे।।१०
दोहा-
जनहित जलहित देशहित,जागरूक हो मीत।
जीवन के आसार तब, जल स्रोतों से प्रीत।।
चौपाई-
सब जीवों की प्यास बुझाए।
मीन मकर मोती जल जाए।।११
शंख कमल जल बीच निपजते।
जिनसे देव ईश सब सजते।।१२
जल से ताल तलैया कूपा।
बापी सरवर सिंधु अनूपा।।१३
खाड़ी सागर से महासागर।
मरु भूमि में अमृत गागर।।१४
झील बाँध सर सरित अनेका।
भिन्न रूप रखते जल एका।।१५
सागर खारा जल भर ढोता।
क्रिस्टल बने राम रस होता।।१६
शीत नीर जम बर्फ कहाता।
बहे पिघल जल धार बनाता।।१७
वही धार नदिया बन जाती।
कुछ नदियाँ बरसाति सुहाती।।१८
जल अतिवृष्टि बाढ़ कहलाती।
अल्पवृष्टि हो फसल सुखाती।।१९
मध्यम जल वर्षा हितकारी।
जीव जन्तु मानव सुखकारी।।२०
दोहा-
वारि अंबु जल पुष्करं, अम्मः अर्णः नीर।
उदकं घनरस शम्बरं,रक्ष मनुज मतिधीर।।
चौपाई-
हिमगल नीर, मेह से नीरा।
बह के बने सरित गम्भीरा।।२१
नदियाँ स्व पथ स्वयं बनाती।
खेत फसल धान सरसाती।।२२
नदियों के तट तीर्थ हमारे।
पुरा सभ्यता नदी किनारे।।२३
नदियाँ ही है जीवन धारा।
प्यारा लगता नदी किनारा।।२४
नौका से आजीविक चलती।
माँझी चले ग्रहस्थी पलती।।२५
नदी नीर पावन जग माने।
सरिता को माँ सम सम्माने।।२६
गंगा माँ पावनतम सरिता।
काव्य कार हारे लिख कविता।।२७
यमराजा की श्वास अटकती।
सबको पापमुक्त नद करती।।२८
गंगा माँ सम पावन धारा।
छू कर दर्शन पुण्य हमारा।।२९
यमुना यादें गंगा भगिनी।
कान्हा-लीला गोपी-ठगनी।।३०
दोहा-
सरिता तटिनी तरंगिणी, द्वीपवती सारंग।
नद सरि सरिता आपगा,जलमाला जलसंग।।
चौपाई-
सरस्वती की राम कहानी।
कहते सुनते पुरा जुबानी।।३१
नदी नर्मदा का हर कंकर।
लगता हमको देवा शंकर।।३२
सरयू घग्घर माही चम्बल।
नदियाँ सब धरती को सम्बल।।३३
नदियों पर जल बाँध बनाते।
बिजली हित संयत्र लगाते।।३४
बाँध बने से बहती नहरें।
इनसे जलस्तर भी ठहरे।।३५
नहरी जल खेतों तक जाए।
खेत खेत फसलें लहलाए।।३६
इसीलिए जल नदी सफाई।
करना सब यह काज भलाई।।३७
नदी मिले ज्यों सागर नीरा।
पंच तत्व में मिले शरीरा।।३८
तन मन नदियाँ नीर सँवारो।
स्वच्छ नीर रख भावि सुधारो।।३९
शर्मा बाबू लाल सुनाई।
जल माला गाई चौपाई।।४०
चालीसा मन चित पढ़ लीजे।
जल नदियों का आदर कीजे।।४१
दोहा-
अपगा लहरी निम्नगा,निर्झरिणी जलधार।
सदा सनेही सींचती, करलो नमन विचार।।
नाम– बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः