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भारत की आन है हिन्दी, मान है हिन्दी,
हर “हिन्दुस्तानी” की पहचान है हिन्दी।
नाजों से हैं पली – बढ़ी शुचिता इसकी,
भावों की अभिव्यक्त में रसखान है हिन्दी।
ऊर्दू , कन्नड़, तमिल, मराठी हर भाषा-भाषी,
करूण, वीर, वात्सल्य का गुणगान है हिन्दी।
हिन्दी के आँचल में, पले – बढ़े शब्द श्रंगार,
तुलसी, कबीर, दादू, सूर से अभिमान है हिन्दी।
गद्य-पद्य की हर विधा में, जलधि सी गहराई है,
खण्डकाव्य, महाकाव्य की खानदान है हिन्दी।
वन्दना यादव “ग़ज़ल”
वाराणसी, यू०पी०
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