“यही सड़ा-पड़ा कपड़ा पहनकर जाएगा क्या बारात में? पता भी है तुझे कि कितने बड़े बड़े आदमी आएंगे वहाँ…?” काका बस के पिछले दरवाजे से बस के अंदर चढ़े और अंदर आते ही बड़बड़ाने लगे।
रामू को पता था कि ऐसी बातें उसे छोड़कर और किसी को नहीं बोली जा सकती हैं? फिर भी वह सिर नीचे किये बैठा रहा। काका बड़बड़ाते हुए उसके पास तक आ गये और उसका कंधा पकड़कर झिड़कते हुए बोले-
“सूखी हड्डी तेरे से ही बोल रहा हूँ। वहाँ हमारी बेइज्जती कराने के लिए जाएगा क्या? अपना बुशट देख पीछे से फटा हुआ है।” इतना कहते हुए उन्होंने उसके फटे बुशट के छेद में उंगली डालकर और फाड़ दिया। फिर उसकी बांह पकड़कर बस से नीचे उतारते हुए बोले – “जा कुछ अच्छा है तो वो पहनकर कर आजा”
रामू ने जब से सुना था कि भैया की शादी तय हुई है और बारात बस से जाएगी तब से वह इसकी तैयारी में जुटा था। ये वाला पेंट शर्ट ही उसका सबसे अच्छा वाला था। हालांकि बुशट के पीठ में छोटा सा छेद था लेकिन बाकी तो और भी जर्जर स्थिति में थे। इस कपड़े को साफ करके उसने तभी से रख दिया था।
दस बारह साल की उमर होती भी कितनी है। लेकिन बिन माँ का बेटा इस उम्र में भी काफी होशियार हो गया था। बाप सुबह ही मजदूरी करने निकल जाता और रामू घर में अकेला…. स्कूल जाता था तो टाइम पास भी हो जाता था पर गर्मी की छुट्टियां हो जाने से अब वह निपट अकेला ही रहता। आस पड़ोस में उसकी उम्र के अन्य बच्चे भी नहीं थे जिसके साथ वह समय निकाल लेता। उसका समय काटने का एक ही जरिया था। कभी इनके दुआरे तो कभी उनके दुआरे…
“चल चल चल नीचे उतर” काका ने बांह पकड़ कर जब उसे नीचे उतारा तो तरह तरह की मिठाईयां आइसक्रीम ठंडा ये सब उसे एक पल में ही दूर जाते हुए दिखाई दिए। रामू थोड़ी देर नीचे खड़ा खाली बस को देखता रहा। काका किसी को फोन पर आने के लिए अनुनय कर रहे थे। “भैया आप ही नहीं आओगे तो कैसे चलेगा?” पर शायद उधर से वो न चल पाने के लिए कोई बहाने बना रहा था इसलिए काका उसे समझाने का प्रयास कर रहे थे। रामू बस को देखते हुए पीछे चलने लगा तो फटी बुशट जो काका के उंगली फंसाकर फाड़ देने के कारण नीचे तक लटक गई थी उसीमे फंसकर गिर पड़ा। बुशट पूरा फट गया था इसका एहसास उसे अब हुआ।
काका से ले चलने की बात कहने का वो मन बना ही रहा था कि फटे बुशट ने उसे रोक लिया। एक बार उसने घर मे पड़े अन्य कपड़ों पर यहीं खड़े खड़े नजर दौड़ाई पर उसमें से कोई भी उसे इस योग्य न लगा तो अंत में वह मन मारकर फटे हुए बुशट को निकालकर हाथ में घुमाते हुए घर की ओर चल दिया।
घर की ओर जाते हुए रामू को अचानक याद आया कि दक्खिन टोले से मास्टर का बेटा ‘मन्नुआ’ जो पिछले ही महीने मरा था उसे पास के ही खेत मे दफनाया गया था और उसकी कब्र के पास ही उसके सारे कपड़ों को भी फेंका गया था। ये बात याद आते ही उसकी आँखों में चमक आ गई। वह तेज़ी से अपनी लक्ष्य की ओर बढ़ा। गेंहूँ के कटे हुए खेत की खूंटियां उसके पैरों में चुभ रही थीं पर वह आगे बढ़ता जा रहा था। जल्दी ही वह अपने गंतब्य तक पहुँच गया। सब कपड़ों को उलट पलट कर देखा। कई कपड़े जो बिल्कुल नए जैसे थे वहाँ बिखरे पड़े थे। एक टीशर्ट उठाने से पहले उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई ‘कोई उसे देख नहीं रहा है’ इस बात से मुतमइन होकर उसने झट से टीशर्ट उठाकर पहना और वापस हो लिया। मुड़ा ही था कि उसकी नज़र लाल रुमाल पर अटक गई। उसने उठाकर उसे भी अपनी जेब के हवाले किया। पास ही एक बेल्ट भी पड़ी थी उसे भी उठाकर लगाने की कोशिश करने लगा। पर पैंट उसे लगाने की इजाजत न दे रहा था तो उसने पैंट भी निकालकर फेंक दिया और एक पैंट भी ढूढ़कर पहना। पास ही एक चप्पल भी पड़ी थी जिसकी जोड़ी ढूढ़ने में उसे थोड़ा टाइम लगा पर उसने वह भी ढूढ लिया। अब रामू पूरा राजा बाबू बन गया था। वह मन ही मन खुश हो रहा था कि अब काका के पास उसे खराब कपड़ों के कारण उतारने का कोई कारण नही मिलेगा।
रामू तेज़ी से आगे बढ़ा बस उसे हिलती हुई दिखाई पड़ी वह और तेज़ चला। बस को रेंगता देख वह दौड़ने लगा। लेकिन इससे पहले कि वह बस तक पहुंचता वह जा चुकी थी।
रामू वहीं बैठकर थोड़ी देर रोता रहा फिर घर की ओर चल पड़ा। लेकिन तभी उसे याद आया कि पिता जी इन कपड़ों के बारे में पूछेंगे तो क्या बताऊंगा? इस सवाल ने उसे फिर झकझोर दिया और वह कपड़े बदलने के लिए फिर से मन्नू की कब्र की ओर चल पड़ा।
चित्रगुप्त (दिवाकर)
बहराइच(उत्तर प्रदेश )