आवश्यक वस्तुओं पर ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था पर कड़ा नियन्त्रण चाहिए?क्योंकि कोरोना से कहीं अधिक भ्रष्टाचार घातक है।जो राष्ट्र को दीमक की भांति अंदर ही अंदर खाए जा रहा है।
रही बात आवश्यक वस्तुओं की तो जान से अधिक कुछ भी आवश्यक नहीं है।परंतु यह भारत है,जो सदियों से दूसरों के अधीन रहा है और दासता का अभ्यस्त हो चुका है।जो 70 वर्ष की स्वतंत्रता के बावजूद दासता का भूत हृदय में समाया हुआ है।इसलिए काला बजारी आम बात है।जिससे अछूता कोई-कोई है और जो अछूते हैं,उन्हें दुत्कारा हुआ है।स्वार्थ अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।जिसके चलते राष्ट्र निर्माण की प्रेरणा में कमीं आ रही है।पैसा मां,पैसा बाप और पैसा ही सब कुछ माना जा रहा है।जो स्वार्थ के लिए गधे को बाप बनाने से भी पीछे नहीं हटते।
इसलिए 'कोरोना' कोहराम मचाते हुए विश्व को संदेश दे रहा है कि प्रकृति से मत खेलो।अन्यथा प्रकृति आपसे खेलेगी।कोरोना यह संदेश भी दे रहा है कि आधुनिक विज्ञान कितना भी विकास कर चुका है।किंतु प्रकृति से शक्तिशाली नहीं है।अतः भ्रष्टाचारियों को भ्रष्टाचार से तौबा कर मानवता व न्याय की ओर अग्रसर होना चाहिए।
#इंदु भूषण बाली