सभ्य समाज या सभ्य परिवार मनुष्य की जिंदगी को कहाँ तक प्रभावित करता है?..इसका उत्तर है कि,एक सभ्य परिवार ही सभ्य मनुष्य का उत्पादन केन्द्र है। मनुष्य के अंदर ऐसी शक्ति पाई जाती है,जो लोगों को चकित कर दे,वह उसके परिवार की ही देन है। मनुष्य जो कुछ भी सीखता है, शुरुआत उसके परिवार से ही होती है,भले ही कुछ अरसे बाद वह भूल जाए। मनुष्य की जो चिंतन शक्ति होती है,वह सभ्य समाज द्वारा मिलती है कि मनुष्य को क्या करना चाहिए, जो सबको उचित लगे। मनुष्य एक विचलित प्राणी है,जो समाज द्वारा या फिर अपने परिवार के द्वारा बंधा होता है। मनुष्य अपने कर्म की पहचान अपने परिवार से ही सीखता है। सामाजिक ज्ञान या फिर सही सामाजिक कर्म समाज से ही होता है,
इसलिए अगर मनुष्य को सभ्य परिवार या सभ्य समाज न मिल पाए तो वह अपने कर्म से विमुख हो जाएगा। वह अपने सही कर्तव्य का पालन नहीं कर सकेगा,इसलिए हर मनुष्य को या हर सामाजिक संगठन को यह हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि,उसके कर्तव्य से मनुष्य पर कहीं विपरीत प्रभाव न पड़ जाए।
इसे घ्यान में रखने से सही वक्त पर सुधार किया जा सकता है।
मनुष्य अपने अंदर जो कुछ भी ग्रहण करता है, वह परिवार या समाज द्वारा
ही उसे मिलता है,इसलिए जरुरी है कि समाज में कोई ऐसा दोष न हो जो मनुष्य पर गलत प्रभाव डाल सके।मनुष्य की सारी मानसिक संरचना वहां के वातावरण के अनुरुप होती है, इसलिए जरूरी है कि, मनुष्य के चारों और जो वातावरण है,वह स्वच्छ रहे।परिवार मानव से बना होता है और समाज परिवार से,इसलिए प्रत्येक मनुष्य को यह ध्यान में रखना चाहिए कि हमारे कार्य का क्या प्रभाव दूसरों पर पड़ता है ।
अगर हमारे कार्य का प्रभाव दूसरों पर विपरीत पड़े तो,यह समाज और परिवार दोनों के लिए घाततक सिद्ध हो सकता है।
मनुष्य का प्रत्येक कार्य कहीं-न-कहीं अपना प्रभाव छोड़ जाता है,इसलिए मनुष्य कार्य का सही होना जरुरी है।मनुष्य का प्रत्येक कार्य समाज या फिर परिवार के लिए होता है,जबकि समाज या परिवार मनुष्य का संगठन है,इसलिए एक मनुष्य का कार्य दूसरों पर प्रभाव आवश्य ही डालेगा। अगर इन सब बातों पर किसी ने गौर नहीं किया तो वह अपने कार्य को सही ढंग से संचालित नहीं कर पायेगा या कार्य गलत ढंग से करेगा। इससे समाज पर प्रभाव पड़ेगा और समाज से मनुष्य पर,,,,,,,,,।
#प्रभात कुमार दुबे
Nice
शुक्रिया