यह आवश्यक नहीं है।चूंकि डाक्टर की गलतियों को रोगी भोगते हैं।पिता की गलतियों को बच्चे भोगते हैं।उसी प्रकार बच्चों की गलतियों का दण्ड मां-बाप भोगते हैं।पत्नीयों की गलतियों को पति भोगते हैं और पतियों की गलतीयां प्राय: पत्नीयां भोगती हैं।राजनेताओं की गलतियों को देशवासी भोगते हैं।मतदाओं की गलतियों को राष्ट्रभक्त भोगते हैं।दहेज प्रथाओं की गलतियों की पीड़ा कोख से लेकर दुल्हनों तक भोगती हैं।भ्रष्ट नेताओं व भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों की गलतियों का दण्ड राष्ट्र भोगता है।मूर्खों की गलतियों का दण्ड बुद्धिमान भोगते देखे जाते हैं।जो आज नहीं सतयुग द्वापर त्रेता इत्यादि युगों से चलता आ रहा है।
सब से बड़ी उल्लेखनीय विडम्बना यह है कि किसी को भी अपनी गलती दिखाई ही नहीं देती।ऐसे में अपनी गलती स्वीकार कर उसे सुधारने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता।क्योंकि दूसरों की गलतियां की भूलों के कारण अपने-अपने जीवन में उत्पन्न हुए मानसिक विकारों एवं तनावों को कम करने के प्रयासों को भी सुधार की राह का शुभारम्भ कहलाता है।
इन्दु भूषण बाली (जम्मू व कश्मीर)