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ऐसा कुछ है
तुझमे और मुझमे
जैसे हवा गाती है
तुम्हारे गीत
मै
लिखता हूँ
तुम्हारे रूप !
पर एकाकी
रहेगा
ये मन
प्रकृति के प्रेम मे
समंदर जैसा
या फिर
शून्य के गर्त मे
ब्रह्माण्ड खोजने जैसा
तुम्हारे प्रेम में !
शंकर सिंह परगाई
श्रीनगर गढ़वाल
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