काश! पुनः लौटकर वह प्यारा बचपन आता।
ठुमुक-ठुमुक चलते हुए पाठशाला जाता।।
गुरूजी का डण्डा देख मन में सकपकाता।
छिप- छिपकर कक्षा में कुछ न कुछ खाता।।
चोर लिखकर पीठ पर, खूब खिलखिलाता।
जब वह पूछता,”किसने लिखा?”तो मुस्कुराता।।
बस्ता में बस्ता बाँध , एक दूजै को लड़ाता।
काश! पुनः लौटकर वह प्यारा बचपन आता।
ठुमुक-ठुमुक चलते हुए पाठशाला जाता।।
सिसकते हुए ‘सावन’, मैम के पास जाता।
एक में दो जोड़कर, साथी को पिटवाता।।
पिटाकर जब रोता तब उसको खूब चिढाता।
कलम, दवात, पटरी भी चतुराई से चुराता।।
मुरझाए हुए पुहुप सा पकड़ाने पर मुरझाता।
सबके सामने झूमकर चिल्लाते हुए पढा़ता।।
कक्षा-कप्तान बनकर कक्षा में रोब जमाता।
काश! पुनः लौटकर वह प्यारा बचपन आता।
ठुमुक-ठुमुक चलते हुए पाठशाला जाता।।
गुरूजी प्रश्न पूछते तो टपाटप बताता।
मन लगाकर पढता,कम से कम बतियाता।।
वही काम करता जो कहती प्यारी माता।
पापा जिधर कहते, उसी दिशा में जाता।।
गन्ना के रस जैसा सरस रखता सबसे नाता।
गुरूजी कहते,”शिष्य बनेगा भारत भाग्य विधाता।। “
जीवन के उपवन को सदा मधुवन सा सजाता।
कठिन परिश्रम करता, श्रद्धा से सिर झुकाता।।
रूठे हुए साथियों को प्यार से मनाता।
नन्हें -मुन्ने बच्चों बीच कविता सुनाता।।
काश! पुनः लौटकर वह प्यारा बचपन आता।
ठुमुक-ठुमुक चलते हुए पाठशाला जाता।।
सुनील चौरसिया 'सावन'
प्रवक्ता
केन्द्रीय विद्यालय टैंगा वैली, पश्चिम कमेंग, अरूणाचल प्रदेश