हाँ बेटा
मेरी मृत्यु पर तुम भी
एक मृत्यु भोज कराना।
सड़क पर कचरे से
भूख मिटाती
गइया है न
उसे भर पेट हरा
चारा खिलाना
फिर जीभर
शीतल जल पिलाना
और देखो !सड़क पर
जो आवारा से
घूमते श्वान दिखे
तो उन्हें भरपेट भोजन कराना
हाँ एक काम जरूर करना
सबसे पहले
अपने आसपास से
प्लास्टिक का
कचरा हटाना
कहि कोई जानवर
अपनी भूख में उसे न खा बैठे।
और हाँ बेटा!
वो जो चींटिया और चिडीया है न
उनको चुग्गा अपने हाथों से
एक बार जरूर खिलाना
कोरे सकोरे में
भरकर पानी
उनकी प्यास बुझाना
देखो मेरे लाल!
दरवाजे पर आए
भूखे प्यासे को
तृप्ति भर देना
और अगर कोई मजदूर दिखे
तो उसकी मजदूरी
पूरी कर देना
उसके बच्चे भूखे न सोये
कोई अनाथ ,गरीब बालक
को पेटभर जलेबी
जरूर खिलाना
मुझे भी बहुत पसंद थी न
जलेबी
और हाँ !
जो वहाँ से गुजरे कोई
अबला
जिसकी गोद मे
दुधमुंहा बच्चा हो
उसे छटाँग भर ही सही
दूध जरूर पिलाना
बेटा ,सुनो !
मुझे कफ़न भले न
ओढ़ाना
तन ढांपने को कपड़ा देना
किसी गरीब का
हो सके
कष्ट मिटाना।
बेटा!
मेरी मृत्यु पर तुम
एसा मृत्युभोज कराना ।
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।