आँगन में आ गई दुपहरी
हवा हो गई सुर्ख़ सुई सी
पेड़ के पत्ते भी सूख रहे
चकमक चकमक धूप रूई सी
अलसाये पत्ते डोल रहे
भेद मौसम का खोल रहे
ठंडी हवा कूलर बन बैठी
पक्षी भी ये बोल रहे
हाड़ तोड़ गर्मी है पड़ती
कमरतोड़ काम को लादे
जब आती रोटी की यादे
भूख पेट अँतड़ी मचलती
शरीर भी तप सा गया
मजदूर थक सा गया
भविष्य के सपने सजोये
भरी दुपहरी रूक सा गया
गाँठे मन की खोल लो
मन में खूब सोच लो
लगे पेड़-पौधे खूब अब
तबाही धरा की रोक लो
#आकिब जावेद
परिचय :
नाम-. मो.आकिब जावेदसाहित्यिक उपनाम-आकिबवर्तमान पता-बाँदा उत्तर प्रदेशराज्य-उत्तर प्रदेशशहर-बाँदाशिक्षा-BCA,MA,BTCकार्यक्षेत्र-शिक्षक,सामाजिक कार्यकर्ता,ब्लॉगर,कवि,लेखकविधा -कविता,श्रंगार रस,मुक्तक,ग़ज़ल,हाइकु, लघु कहानीलेखन का उद्देश्य-समाज में अपनी बात को रचनाओं के माध्यम से रखना