कवि सम्मेलनों से हो रही कविता नदारद, चुटकुलें और चुहल हावी

0 0
Read Time9 Minute, 2 Second

 

arpan jain

कविता के स्वरुप के साथ छेड़छाड़ हुई, तुकबंदी के चक्कर में विधाएँ हाँफने लगी, भाषा का खुले आम अपमान होने लगा, कवि सम्मेलनों में बैठें धृतराष्ट्र के साथ बैठें दुस्शासन सरे आम काव्य का चीरहरण करने लग गए, विदूषक मंडलियों के सहारे निजी तो ठीक है पर सरकारी खर्च पर हुए कवि सम्मलेन भी कविता विहीन नज़र आने लगे, शारदा के मंचों से नग्नता और चुहलबाजी होने लगी, हास्य के नाम पर चुटकुले परोसे जाने लगे, संचालक और कवयित्रियों की चोंच लड़ाना तो आम हो रहा था पर उसके बहाने नग्नता और द्विअर्थी संवादों का खुले आम मंचों से परोसा जाने लगा, तब कही जा कर यह लिखने पर विवश होना पढ़ रहा है कि कविताएं कवि सम्मेलनों से विदा हो रही है और कवि सम्मलेन अपने अस्ताचल की तरफ बढ़ चुके है।

दिनकर, निराला, महादेवी, अज्ञेय व बच्चन से सुशोभित हिन्दी कविसम्मेलनों की समृद्धशाली परंपरा जिसका इतिहास भी इसीलिए प्रसिद्द हुआ क्योंकि उस दौर में जन सामान्य को काव्य गरिमा के आलोक से जोड़ कर देशप्रेम का बीजारोपण उनके मन में करना था, चूंकि उस दौर में भारत में जन समूह के एकत्रीकरण के लिए बहाने कम ही हुआ करते थे, जिसमें लोग सहजता से आएं और वहां क्रांति का स्वर फूंका जा सके। ऐसे दौर में कवि सम्मेलनों के माध्यम से राष्ट्र जागरण का काम होने लगा, फिर जनमत के मनोरंजन का दायित्व भी कवि सम्मेलनों ने निभाया। जनता के स्वस्थ्य मनोरंजन का बीड़ा उठाने का कार्य करते हुए भी समाज की गरिमा और सांस्कृतिक अक्षुण्णता का निर्वहन भी बखूबी किया गया। वही दौर याद करें तो उसी के कारण जनता का हिन्दी कविता पर विश्वास बना और प्रसिद्धि भी मिली। और जब उसी दौर को आज के परिपेक्ष में देखा जाने लगा तो आँखें शर्म से झुकना शुरू हो गई।

हाल ही के दिनों में इंदौर के जाल सभागृह में मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग के अंतर्गत संस्कृति परिषद् ने कवि सम्मलेन आयोजित किया, मध्यप्रदेश सरकार की कैबिनेट मंत्री (चिकित्सा शिक्षा, आयुष एवं संस्कृति मंत्री) विजयलक्ष्मी साधो भी बतौर अतिथि बैठी रही। कविताओं की आस लगाए सुधि जनता भी पहुँची तो किन्तु मंचस्थ कवियों की शृंखलाबद्ध चुहलबाजी और चुटकुलों से सजे मजमें में काव्य रसिक जनता निराश ही हुई। आखिरकार हिन्दी कविसम्मेलनों के इस बिगड़े हुए स्वरुप के जिम्मेदार कौन है? मंच पर कवि कम विदूषक ज्यादा नज़र आने लगे, और कवि सम्मलेन भी विदूषक स्वरुप में?

इंदौर में हुए इस कवि सम्मेलनों का समाचार संस्थाओं ने जब लिखा भी तो यही शीर्षक दिए कि ‘संस्कृति विभाग के कवि सम्मलेन में हावी रही चुटकुलेबाजी’ , ‘कवि सम्मेलनों में चलता रहा चुटकुलों का दौर’ , ‘कवि सम्मलेन में चुटकुलों की बौछार’ । आखिर क्यों आयोजकों और संयोजकों ने ऐसी हरकतें की जिससे हिन्दी कविता को शर्मिंदा होना पड़ा।

संभवतः इंदौर के विशुद्ध साहित्यिक मिज़ाज़ को भाँपने में आयोजक और संयोजकों के साथ-साथ कवि भी गच्चा खा गए, गच्चा क्या खा गए वे अपनी हमेशा की आदतों को इंदौर में भी परोस गए, जिसका उन्हें भान नहीं था कि ये इंदौर है जो साहित्यक जमात का अभिन्न अंग है। जिन्होंने ने भी मंचों पर कविता की हत्या करना शुरू की, वे इस बात से भी अनभिज्ञ है कि कविता की अवहेलना उनका तो भविष्य चौपट करेगी साथ में हिंदी कवि सम्मेलनों को भी बंद करवा देगी। और उन विदूषकों के चक्कर में वे लोग जो आज भी मंचों पर हिन्दी कविता का स्वाभिमान बचाते है वो भी घुन की तरह पिसते जाएंगे।

संचालकों का कवियित्रियों के साथ चोंच लड़ाना (प्रायः यह शब्द कवि सम्मेलनों के संयोजकों का प्रिय है), द्विअर्थी संवाद करना, हास्य के बहाने अश्लील या कहें स्तरहीन चुटकुले परोसना, इशारेबाजी, आदि पहले ही कवि सम्मेलनों का स्तर साहित्यिक रूप से तो गिरा ही रहें है, किन्तु अब यह कविता विहीन कवि सम्मलेन न जाने कौन से आग लगाएंगे। जो भी होगा पर इसका परिणाम यह होगा कि कवि केवल यू ट्यूब तक सिमट जायेंगे और कविता बेचारी अभागन की तरह केवल अपनी हत्या पर खुद ही आँसू बहाती रहेगी।

मंचों का गिरता स्तर अब भाषा का भी अस्तित्व कमजोर करने लगा है, और यही ज्यादा दिनों तक चला तो एक दिन ऐसा भी आएगा कि हम कवि सम्मेलनों से हाथ धो बैठें क्योंकि दुःख तब होता है जब श्रोता कविता सुनने जाता है और बिन कविता खाली हाथ लौटता है। आखिर ये स्वरूप के साथ खिलवाड़ क्यों? चुटकुलेबाजी और द्विअर्थी संवादों से शारदे के मंचों को बचाना चाहिए, अन्यथा एक दिन ऐसा भी आएगा कि लोग कवि सम्मेलन भूल जाएंगे। फिर ढूंढ़ना श्रोता, आयोजक और प्रतिष्ठा, तब हाथ में केवल झुनझुना होगा, यूट्यूब चैनलों तक सिमट जाओगे ,मंच को तरसना पड़ेगा। करबद्ध याचना है कि कम से कम हिंदी कवि सम्मेलनों को ‘कविता विहीन’ मत बनाइए।

#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’

परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर  साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

राम जन्मभूमि मामले में लक्ष्य निकट है : विहिप

Fri Aug 2 , 2019
नई दिल्ली | विश्व हिन्दू परिषद् ने श्रीराम जन्मभूमि के सम्बंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मामले की नियमित सुनवाई के निर्णय पर संतोष व्यक्त किया है। विहिप के अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष एडवोकेट श्री आलोक कुमार ने आज कहा कि हम आशावान है कि लगभग 500 वर्षो से चल रहे संघर्ष व 70 […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।