सुधी साहित्यकार डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” की काव्य-कृति शतदल का मैंने गहन अवलोकन किया। इस कृति में 100 स्फुट रचनाएँ हैं। अर्थात मुक्तक कवितारूपी 100 पंखुड़ियाँ हैं, जो भक्ति-भावना,प्रेम-भावना,राष्ट्र-प्रेम एवं नैतिकतापूर्ण भावनाओं से ओत-प्रोत हैं।
कवयित्री के द्वारा जिन वैविध्य विषयक भावों को जिस सहजता एवं सौष्ठव के साथ प्रस्तुत किया गया है, वह नितान्त श्लाघनीय है। शतदल में विद्यमान सरलता एवं सहजता सहृदय जनों के हृदयों को सहसा ही आह्लादकता प्रदान करने वाली है।
भाषा-शब्द व्यंजनापूर्ण, प्रवाहमय एवं ध्वन्यात्मक हैं। गद्य कविता तथा हाइकु के दौर में छंदबद्ध कविता अपना अस्तित्त्व खोती जा रही है। ऐसे समय में माँ भारती की वरदपुत्री डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” ने कई काव्य-संग्रह छन्दोबद्ध कविताओं के सृजन से काव्याकाश को सशक्त बनाने का प्रयत्न किया है।
इनकी काव्यकृति शतदल में घनाक्षरी,सवैया,गीत, लोकगीत,मुक्तक आदि विविध विधाओं में रचनाएँ लिखी गईं हैं, जो भाव-सम्प्रेषणता से परिपूर्ण हैं।”मृदु” जी की भावनाएं निर्झरिणी के समान अन्तस में प्रवाहित होकर आत्मा को रसाप्लावित करती हुई कविता को प्रसवित करती रहती हैं। मृदु जी की भावनाओं में निर्मलता, निश्छलता एवं निष्कलुषता विद्यमान रहती है, जो स्पष्ट रूप से इनकी कविताओं में परिलक्षित होती है।
आज समाज जब शिथिलता को प्राप्त कर रहा है, ऐसे समय में कुछ साहित्य-सर्जक अपनी रसमाधुरी से जन-जन को आप्लावित कर रहे हैं। इसी श्रृंखला में बड़ी ही सहृदयता एवं सम्मान से लिया जाने वाला एक नाम है– डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” जी का। इन्होंने पुरानी परिपाटी को नूतन परिवेश प्रदान किया है। इसमें कवयित्री की, माता-पिता, गुरु, देवी-देवताओं के विविध रूपों के प्रति प्रेम, आदर,श्रद्धा, भक्ति,विश्वास से परिपूर्ण दर्शन होते हैं। इनकी रचनाओं को पढ़कर ऐसा ज्ञात होता है कि इन्होंने अत्यन्त गहनता पूर्वक मनन-चिन्तन किया है और यह सर्वथा औचित्यपूर्ण भी है, क्योंकि एक मनीषी के लिए मननशीलता अतिशय अनिवार्य गुण है।
कवयित्री की दृष्टि से सूक्ष्मतिसूक्ष्म चित्रण भी बच नहीं पाया है। भावों की सम्प्रेषणता को मानवीकरण के रूप में प्रस्तुत करना डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” की विशिष्ट विशेषता रही है। इनके काव्य में भक्ति रस की सहज धारा प्रवाहित हो रही है। इन्होंने खड़ी बोली,अवधी एवं ब्रज बोलियों में छन्द, गीत,सवैयों की रचना करके अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किया है, जो अतिशय श्लाघनीय है।
डॉ0 मृदुला जी ने अपने काव्य को सहजता एवं सुष्ठता से परिपोषित किया है। इनकी रचनाओं में भाषा,रस,छन्द,अलंकार,गुण, रीति,शक्ति इन सभी का औचित्यपूर्ण प्रयोग किया गया है। सभी रचनाएँ स्वाभाविक, माधुर्य, प्रसाद एवं ओज गुणों से परिपूर्ण एवं लयात्मक हैं।
अपने काव्यसंग्रह शतदल का शुभारम्भ विघ्नहन्ता गौरीसुत का वन्दन करके डॉ0 मृदुला जी के द्वारा भारतीय परम्परा का निर्वाह किया गया है।
कवयित्री की रचनाओं में देश के प्रति समर्पण है, विश्वबंधुत्त्व की भावना में डूबी हुई मानवता है, राष्ट्रभाषा हिन्दी का गौरव-गान है, षटऋतुओं का मनोरम दृश्य है, उमड़ती-घुमड़ती घन-घटाएँ, खेतों में लहलहाती गेंहूँ की बालियाँ हैं, मटर, चना की फलियाँ हैं, बौराये हुये आम्र-विटपों पर मतवाली कोयल की मनभावन कूक है,शरद ऋतु की गुनगुनी धूप है, ग्रीष्म में सूरज की तपन है और नीर भरे मेघों की राह निहारता हुआ पपीहा है।
कवयित्री का वर्णन क्षेत्र अतीव विस्तृत है, इनका शब्द-जगत एवं भाव-जगत अत्यन्त व्यापक है।
डॉ0 मृदुला कारयित्री प्रतिभा की अत्यन्त धनी हैं। इनकी रचनाओं की भाषा प्रांजल, शब्द-योजना ध्वन्यात्मक, बिम्ब-विधान सुरुचिपूर्ण है। भक्ति रस के साथ-साथ श्रृंगार रस के दोनों पक्ष- संयोग और वियोग तथा शान्त रस का प्रयोग औचित्यपूर्ण है। शब्दालंकार एवं अर्थालंकार दोनों का प्रयोग काव्य-सौन्दर्य की अतिशयता में वृद्धि करता है। मुख्य रूप से उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, अतिशयोक्ति, पुनरुक्त एवं मानवीकरण अलंकारों के द्वारा डॉ0 मृदुला जी की रचनाएँ श्रेष्ठता के उच्चतम शिखर पर अलौकिक आनन्द की अनुभूति कराती हैं। इनका काव्य पठनीय एवं जीवनोपयोगी है।
डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” का मुक्तक काव्य-संग्रह “शतदल” अत्यन्त उत्कृष्ट कोटि का है, जो जन-जन के जीवन को अपनी सुगन्ध से सुवासित करता हुआ, नवजीवनी-शक्ति का संचार करता हुआ नव चेतना एवं उत्साह से परिपूर्ण कर रहा है।
यह मुक्तक काव्य-संग्रह “शतदल” दसों दिशाओं में अपने सौन्दर्य से, अपनी सुगन्ध से सुगन्धित एवं आनन्दित करता हुआ जन-जन के हृदयों को आह्लादित करता हुआ परमानन्द की अनुभूति कराता हुआ अपना परचम लहरा रहा है।मैं डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” जी को साधुवाद देती हूँ और निरन्तर गौरवान्वित होते हुए आशा करती हूँ कि इनकी गौरवमयी सशक्त लेखनी निरन्तर अबाध गति से गतिमान होती रहे।
समीक्षक एवं साहित्यकार
कु0 विमला शुक्ला
लखीमपुर-खीरी (उ0प्र0)
कॉपीराइट–लेखिका कु0 विमला शुक्ला