माँ से बढ़कर कुछ नही

0 0
Read Time10 Minute, 1 Second
sanjay
साथियों,मुझे बहुत ही गहरा एहसास हुआ एक इंसान की मातृ भक्ति को देखकर कि कैसे वो अपनी बूढ़ी माँ की सेवा करता है। दोस्तों कुछ भी करो,कितने भी दयालु बनो,दान-धर्म करो, परन्तु यदि वो इंसान अपने माता-पिता की सेवा या उनका आदर नहीं करता तो वो कभी भी सुखी नहीं रह सकता। कहते हैं कि इंसान कितने ही जन्म क्यों न ले,परन्तु माता का कर्ज वो कभी भी नहीं उतार सकता है। यदि माँ घर में सुखी है तो वो घर अपने-आप ही मंदिर बन जाता है,क्योंकि माँ सदा ही अपने परिवार और बच्चों के लिए प्रार्थना,व्रत और धार्मिक अनुष्ठान निरंतर करती रहती है। किसके लिए ? स्वंय के लिए क्या,नहीं वो सब अपने बच्चों और परिवार के लिए ही,कठिन से कठिन साधना करती है। जिन घरों में माता का सम्मान या उनकी उपेक्षा की जाती है,आप उन परिवारों का माहौल देखना ? माना कि उनके पास पैसे बहुत होंगे,परन्तु दावे से कह सकता हूँ कि उनके घरो में शांति नहीं होगी। घर का माहौल कुछ अलग ही होगा। बच्चों में संस्कार नहीं होंगे,सिर्फ पैसा होगा,परन्तु मानसिकता ठीक नहीं होगी। अपनी बात को समझाने के लिए छोटी-सी कहानी का सहारा लेता हूँ। कल बाज़ार में फल खरीदने गया,तो देखा कि फल के ठेले पर छोटा-सा बोर्ड लटक रहा था, उस पर मोटे अक्षरों से लिखा हुआ था…।
“घर में कोई नहीं है,मेरी बूढ़ी माँ बीमार है,मुझे थोड़ी-थोड़ी देर में उन्हें खाना,दवा और टॉयलेट कराने के लिए घर जाना पड़ता है, अगर आपको जल्दी है तो अपनी मर्ज़ी से फल तौल लें,भाव साथ में लिखे हैं। पैसे कोने पर गत्ते के नीचे रख दें,धन्यवाद!” मुझे देखकर पहले तो बहुत ही हैरानी हुई कि इस तरह से दुकान खोल कर बोर्ड लगा दिया,वो भी आज के ज़माने में,जहाँ हर इंसान एक-दूसरे को लूटने के लिए तैयार रहता है।
साथ ही एक पंक्ति और भी लिखी थी और उसने मेरा दिल जीत लिया-“अगर आपके पास पैसे नहीं हों तो मेरी तरफ से ले लेना, इजाज़त हैl” इसी पंक्ति के कारण मुझे लगा कि कभी भी उसकी दुकान से कोई चोरी नहीं कर रहा है,क्योंकि वो खुद ही बोल रहा है कि ले लो बिना पैसे केl कितना भी बड़ा लुटेरा हो,यदि कोई इंसान उससे कहे कि ले जाओ माल जो आपको ले जाना है,तो निश्चित ही वो लुटेरा एक पैसा लूटकर नहीं ले जायेगा।
मुझे भी फल लेना था,तो मैंने इधर-उधर देखा,पास पड़े तराजू में दो किलो सेब तौले,दर्जन भर केले लिये,बैग में डाले,रेट लिस्ट से कीमत देखी,पैसे निकालकर गत्ते को उठाया,वहाँ सौ-पचास और दस-दस के नोट पड़े थे,मैंने भी पैसे उसमें रख कर उसे ढंक दिया।
मन-ही-मन सोचा,बैग उठाया और अपने फ्लैट पर आ गया, परन्तु जो मैंने आज देखा वो दृश्य मेरे दिलो-दिमाग से नहीं निकल रहा था। रात को खाना खाने के बाद मैं उधर से निकला, तो देखा एक कमज़ोर-सा आदमी,दाढ़ी आधी काली-आधी सफेद, मैले से कुर्ते पजामे में ठेले को धक्का लगाकर बस जाने ही वाला था,कि वो मुझे देखकर मुस्कुराया और बोला-“साहब आज तो फल खत्म हो गए।” मैंने बोला-“कोई बात नहीं।” मैंने पूछा कि -“आपका क्या नाम है ?” तो बोला-“जी सीताराम”,मैं साथ में चलते-चलते बात करता रहा। फिर हम सामने वाले ढाबे पर बैठ गए। मैंने चाय मँगाई,वो कहने लगा,-“पिछले तीन साल से मेरी माता बिस्तर पर है,कुछ पागल-सी भी हो गईं है और अब तो फ़ालिज भी हो गया हैl मेरी कोई संतान नहीं है,बीवी मर गयी है, सिर्फ मैं हूँ और मेरी माँ..! माँ की देखभाल करने वाला कोई नहीं है,इसलिए मुझे ही हर वक़्त माँ का ख्याल रखना पड़ता है। उसके पास बार-बार जाना पड़ता है,बाबूजी एक दिन मैंने माँ के पाँव दबाते हुए बड़ी नरमी से कहा,-माँ तेरी सेवा करने को तो बड़ा जी चाहता है पर जेब खाली है और तू मुझे कमरे से बाहर निकलने नहीं देतीl कहती है,तू जाता है तो जी घबराने लगता है, तू ही बता मैं क्या करूँ ? न ही मेरे पास कोई जमा पूंजी है। ये सुनकर माँ ने हाँफते-काँपते उठने की कोशिश की,मैंने तकिये की टेक लगाईl उन्होंने झुर्रियों वाला चेहरा उठाया,अपने कमज़ोर हाथों को ऊपर उठाया,मन ही मन राम जी की स्तुति की,फिर बोली..तू ठेला वहीं छोड़ आया कर,हमारी किस्मत का हमें जो कुछ भी है,इसी कमरे में बैठकर मिलेगा। मैंने कहा,माँ क्या बात करती हो,वहाँ छोड़ आऊँगा तो कोई चोर-उचक्का सब कुछ ले जायेगा,आजकल कौन लिहाज़ करता है ? बिना मालिक के कौन फल खरीदने आएगा ? कहने लगीं..तू राम का नाम लेने के बाद ठेले को फलों से भरकर छोड़कर आजा बस,ज्यादा बक-बक नहीं कर,शाम को खाली ठेला ले आया कर,अगर तेरा रुपया गया तो मुझे बोलना,समझा।
बाबूजी ढाई साल हो गए हैं,सुबह ठेला लगा आता हूँ…शाम को ले जाता हूँ,लोग पैसे रख जाते हैं..और फल ले जाते हैं,एक धेला भी ऊपर-नीचे नहीं होता,बल्कि कुछ तो ज्यादा भी रख जाते हैंl कभी कोई माँ के लिए फूल रख जाता है,कभी कोई और चीज़!! परसों एक बच्ची पुलाव बनाकर रख गयी,साथ में एक पर्ची भी थी “अम्मा के लिएl”
एक डॉक्टर अपना कार्ड छोड़ गए,पीछे लिखा था,’माँ की तबियत नाज़ुक हो तो मुझे फोन कर लेना,मैं आ जाऊँगा,कोई ख़जूर रख जाता है,रोजाना कुछ न कुछ मेरे हक के साथ मौजूद होता है। न माँ हिलने देती है,न मेरे राम कुछ कमी रहने देते हैंl माँ कहती है, तेरे फल मेरा राम अपने फरिश्तों से बिकवा देता है।”
दोस्तों,माँ क्या कुछ नहीं करती अपने बच्चों के लिए और आज के ज़माने में बहुत कम लोग अपने माँ-बाप को वो स्थान देते हैं, जिनके वो असली हक़दार हैं। माँ की वाणी में वो सत्य और आशीर्वाद छुपा होता है,जिस कवच को कोई भी नहीं भेद सकता है। महाभारत में कुंती माता के आशीर्वाद से दुर्योधन का शरीर एकदम से वज्र का हो गया था न,परन्तु दुर्योधन की सोच में खोट था तो उसने माँ की पूरी बात नहीं मानी थी और फल क्या मिला,सभी को पता है। फल वाले की अपनी माँ के प्रति पूरा सम्मान और सेवाभाव के साथ श्रध्दा भी है,तो किस तरह उसकी दुकान को स्वंय परमात्मा ने चलाकर उसे स्वावलम्बी बनाकर जो मातृसेवा करवाई है,वो अपने-आपमें एक मिसाल है। यदि आपके भाव सेवा के हैं तो परमात्मा भी आपकी मदद करता है। आखिर में, इतना ही कहूंगा कि माँ से बढ़कर इस दुनिया में कोई और हो ही नहीं सकता है। माता दिवस पर सभी माताओं को प्रणाम और चरणों को स्पर्श करता हूँ। सदैव याद रखिए कि माँ जैसा और कोई इस संसार में नहीं हो सकता हैl

#संजय जैन

परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों  पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से  कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें  सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की  शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

माँ का प्यार अनमोल

Mon May 13 , 2019
माँ का प्यार है अनमोल नही है उसका कोई मोल माँ की ममता सब पर भारी नही है उसका कोई तोल कभी माँ बनकर तो कहीं दोस्त बनकर बच्चों को देती सहारा है त्याग दया और मातृत्व से भरा ये जीवन सारा है दुनियां से लड़ जाती बच्चों के लिए […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।