सनाया तीन बहनों में सबसे बड़ी थी। उसकी शादी हो चुकी थी। उसकी दो छोटी बहनें शहर के प्रतिष्ठित कॉलेज में पढ़ती थीं। सनाया का प्रायः अपने मायके आना-जाना होता रहता था। इस कारण वह मायके में होने वाले हर हलचल से परिचित रहती थी। उसकी दोनों बहनें सुन्दर होने के साथ-साथ पढ़ने में काफी होशियार थी। दोनों बहनों के लिए अच्छे रिश्ते आने लगे। एक लड़का निजी कंपनी में मैनेजर था, उसने सनाया की बड़ी बहन सुरभि को पसंद किया। साथ ही छोटी बहन को एयरोक्राफ्ट इंजीनियर ने पसंद किया था, जिसका घर परिवार बहुत ही अच्छा था। दोनों बहनों के रिश्ते से परिवार के सभी लोग बहुत खुश थे, पर सबसे छोटी बहन आन्या खुश नहीं थी। उसने शादी से इंकार कर दिया। शादी न करने की वजह पूछे जाने पर उसने आगे पढ़ने की बात कही। उस समय सभी ने उसकी बात मान ली और उसके रिश्ते को मना कर दिया । सुरभि की शादी बहुत ही धूमधाम से हुई। धीरे-धीरे वक्त गुजरने लगा। अब सनाया और सुरभि भी मायके कम आने- जाने लगी। इधर आन्या अपनी स्नातक की डिग्री पूरी कर स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने लगी। आन्या ने स्नातकोत्तर के दरम्यान ही एक लड़के को पसंद कर लिया था और उसने तय कर लिया था कि वह शादी करेगी तो उसी लड़के से करेगी। घर में यह बात उसने किसी को नहीं बताया था। एक दिन सनाया को आन्या के बारे में किसी और से सुनने को मिला कि वह किसी लड़के को पसंद करती है, जो उसके घर के पास रहता है। ऐसा सुनकर सनाया ने आन्या से बात की – और उससे पूछा कि क्या वह किसी लड़के को पसंद करती है, तो तुरंत आन्या ने मना कर दिया। सनाया उस समय चुप हो गयी क्योंकि उसे भी अपनी बहन पर पूरा विश्वास था। जैसे जैसे दिन बीतता गया सनाया को और लोगों से भी आन्या के बारे में सुनने को मिला। तब सनाया को आन्या पर शक होने लगा और इस बार उसने आन्या से बात करने के बजाय अपनी माँ को सारी बात बतायी। आन्या पहले ही जानती थी कि एक दिन ऐसा होने वाला है इसलिए उसने माँ को पहले ही यह बता दिया था कि दीदी उसके बारे में क्या सोचती है, दीदी के साथ-साथ उसने जीजा को भी दीदी का साथ देने की बात बतायी थी। माँ ने जब सनाया के मुँह से आन्या के संबंध में यह बात सुनी तो उसने सनाया को कहा कि ‘‘तुम नाहक ही मेरी बेटी को बदनाम कर रही हो। मुझे तो किसी ने आन्या के बारे में जैसा तुम कह रही हो नहीं कहा, फिर तुम कैसे ऐसा कह सकती हो कि लोग आन्या के बारे में कुछ गलत कह रहें हैं। मुझे तो लग रहा है कि तुम ही उसे बदनाम कर रही हो, ताकि उसकी शादी न हो।’’ सनाया माँ की बात सुनकर अवाक रह गयी। उसे इस तरह के उत्तर की उम्मीद नहीं थी। उसने माँ को समझाते हुए कहा कि माँ ऊपर की ओर मुँह करके थूकने पर थूक अपने ही ऊपर गिरता है, ठीक उसी प्रकार अपनों की बुराई करने पर उसके छीटें अपने ऊपर ही पड़ते है। फिर आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैं ऐसा कुछ कर सकती हूँ । माँ कुछ समझने को तैयार नहीं थी क्योंकि आन्या ने उसके मन में यह बात डाल दी थी कि दीदी जीजा की बात सुनती है और जीजा मेरी शादी नहीं होने देना चाहते हैं। माँ को तो आन्या पर पूरा विश्वास था कि वह कभी झूठ नहीं बोल सकती । सनाया माँ को इस बारे में समझाती रह गयी पर वह आन्या के झूठ बोलने की बात पर यकीन ही नहीं कर सकी। तब सनाया ने माँ को और समझाना उचित नहीं समझा।
जिस प्रकार अनार के पकने पर वह खुद ही फट कर उसके पकने की बात को साबित कर देता है, उसी प्रकार जो सच है वह एक न एक दिन जरूर सबके सामने आ ही जाता है, यह सोचकर उसने इस बात की चर्चा और किसी से नहीं की । यहाँ तक कि उसने अपने पति को भी नहीं बताया क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि यदि उसने अपने पति को आन्या के बारे में बताया, तो वह उसे ही ताना मारेंगे और उसे कहेंगे – ‘‘और करो आँख बंद करके बहन पर विश्वास’’। वह चुपचाप दिन रात घुलती जा रही थी। उसे बहुत दिनों तक तो यह समझ ही नहीं आया कि आखिर माँ को क्यों ऐसा लग रहा है कि मैंने आन्या के बारे में झूठी खबर फैलायी। ऐसे समय में एक दिन घर की सफाई करने के दरम्यान उसे अपने दादाजी की दी हुई गीता सार मिल गई । सनाया ने गीता सार को पढ़ा उसमें पहले ही लाइन में लिखा था – ‘‘क्यों व्यर्थ चिंता करते हो, किससे व्यर्थ डरते हो, कौन तुम्हें मार सकता है, आत्मा न पैदा होती है, न मरती है। जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, जो होगा वह अच्छा ही होगा।’’ इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद सनाया ने आन्या के बारे में चिंता करना छोड़ दिया। एक वर्ष बाद आन्या की पढ़ाई पूरी हुई और उसकी शादी की बात चलने लगी तब आन्या ने अपनी माँ को उस लड़के की खूबियों के बारे में बताया और माँ को इस बात के लिए राजी भी कर लिया कि यदि उस लड़के के यहाँ से रिश्ता आता है, तो उस रिश्ते को वह स्वीकार कर ले। साथ ही पिता को भी इस रिश्ते के लिए मना ले। माँ आन्या से बेहद प्यार करती थी, इसलिए उसने उसके पिता को भी आन्या की शादी के लिए मना लिया। आन्या का रिश्ता पक्का होने पर दोनों बड़ी बहनों को खबर की गयी। अब तक सनाया अपने आप को सँभाल चुकी थी, सो उसने नाहक ही किसी को कुछ नहीं कहा और आन्या की शादी हो गयी। आन्या यह बात जानती थी कि उसने अपनी बात माँ से मनवाने के लिए कहीं न कहीं सनाया और बड़े जीजा को मोहरा बनाया था, इसलिए वह अपनी ही बड़ी बहन सनाया और जीजा से नजर नहीं मिला पा रही थी। बाद में भले ही सनाया ने बहन होने के नाते उसे माफ कर दिया पर उसके जीजा ने उससे बात करना बंद कर दिया था। उसके जीजा इस बात से नाराज नहीं थे कि आन्या ने अपनी पसंद के लड़के से शादी की बल्कि इस बात से नाराज थे कि उसने अपनी बात मनवाने के लिए गलत तरीका अपनाया। उसे यदि अपनी पसंद के लड़के से शादी करनी ही थी, तो जब सनाया ने उससे पूछा तो वह सबकुछ सच-सच बता सकती थी। माँ को भी अपनी पसंद के बारे में बिना सनाया को शामिल किए सच बता देती तो जो कड़वाहट उसके जीजा के मन है, वह न होती। इस कड़वाहट को दूर करने में उसे वर्षों लगे।
#डॉ मनीला कुमारी
परिचय : झारखंड के सरायकेला खरसावाँ जिले के अंतर्गत हथियाडीह में 14 नवम्बर 1978 ई0 में जन्म हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल में हुआ। उच्च शिक्षा डी बी एम एस कदमा गर्ल्स हाई स्कूल से प्राप्त किया और विश्वविद्यालयी शिक्षा जमशेदपुर वीमेन्स कॉलेज से प्राप्त किया। कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में पत्र प्रस्तुत किया ।ज्वलंत समस्याओं के प्रति प्रतिक्रिया विविध पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। प्रतिलिपि और नारायणी साहित्यिक संस्था से जुड़ी हुई हैं। हिन्दी, अंग्रेजी और बंगला की जानकारी रखने वाली सम्प्रति ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में पदस्थापित हैं और वहाँ के छात्र -छात्राओं को हिन्दी की महत्ता और रोजगारोन्मुखता से परिचित कराते हुए हिन्दी के सामर्थ्य से अवगत कराने का कार्य कर रहीं हैं।