मजदूर से दूरी क्यों?
होती क्यों दूर व्यवस्थाएँ?
जबकि वो तो स्तंभ है प्रगति की
रोज बनाते नव आकार
इनके हाथों से सजी
हर वो महल की दर-ओ- दिवार।
मजबूरी इनका पीछा न छोड़े
मजदूरी करते दिन-रात
देश-परदेश की मिट्टी मे रहकर
सजते- संवारते अपने हालात।
जरूरत की श्रृंगार से
प्रवासी की नाम से
अवहेलनाओ की चक्रव्यूह में
बूझा रहे भूख की आग।
मजदूर होते बहुत ही खास
इनके बिना न होते पूर्ण काज
फिर भी उड़ाया जाता उपहास
नियम कानून है पर कोई नही खास।
कभी उनके दिलो से पूछो
धूप-तपिस-बारिस में रहकर देखो
इनके किये कार्यो का कोई मोल नहीं
तुम सभझ बैठोगे उसे समझ नहीं।
वो तो रत्न है तुम्हें देकर ही जाता
चंद सिक्को की खातिर
अपना बजूद छोड़ जाता।
गौर करोगे जब कभी
उन दर-ओ- दिवार
नजर आयेगा सामने
जिसने बनाया वह दिवार ।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति