नदी 

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mukesh rishi varma

कल-कल करती बहती नदी
जंगल और पहाड़ों से निकलती नदी

इठलाती, बलखाती नागिन रूप बनाती
नित-नित सबकी प्यास बुझाती

बरसातों में रूद्ररूप बनालेती
तब बड़ी डरावनी हो जाती

घर्र – घर्र करके सबकुछ बहा ले जाती
और जन-धन की बड़ी हानि हो जाती

गर्मी में मर जाती, मिट जाती
बस! गंदा सा नाला बन कर रह जाती

दादी कहती वर्षों पहले ऐसी नहीं थी नदी
शहरों ने गंदी करदी निर्मल नदी

अब मिटने को आई नदी
करुणाभरी पुकार करे नदी…

#मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

परिचय : मुकेश कुमार ऋषि वर्मा का जन्म-५ अगस्त १९९३ को हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए. हैl आपका निवास उत्तर प्रदेश के गाँव रिहावली (डाक तारौली गुर्जर-फतेहाबाद)में हैl प्रकाशन में `आजादी को खोना ना` और `संघर्ष पथ`(काव्य संग्रह) हैंl लेखन,अभिनय, पत्रकारिता तथा चित्रकारी में आपकी बहुत रूचि हैl आप सदस्य और पदाधिकारी के रूप में मीडिया सहित कई महासंघ और दल तथा साहित्य की स्थानीय अकादमी से भी जुड़े हुए हैं तो मुंबई में फिल्मस एण्ड टेलीविजन संस्थान में साझेदार भी हैंl ऐसे ही ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय का संचालन भी करते हैंl आपकी आजीविका का साधन कृषि और अन्य हैl

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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