विद्यालय

2 0
Read Time2 Minute, 28 Second
nikhilesh yadav
विद्यालय को जेल समझने वालों तुम इतना सुन लो,
ये स्वतंत्रता की उड़ान है, अपने पंख यहाँ चुन लो
माना कि अभी वक़्त तुम्हारा है इतिहास पढ़ने का,
मिलेगा मौका तुम्हें भी खुद अपना इतिहास गढ़ने का
माना कि अभी राह कठिन है, कठिन चढ़ाई पर्वत-सी,
थककर तुम यूँ बैठ न जाना, रखो हौसला चढ़ने का
मेहनत का ये मूलमंत्र है, शिक्षक की बातें गुन लो।
ये स्वतंत्रता की उड़ान है, अपने पंख यहाँ चुन लो
बच्चों तुम छोटे हो अभी तुमसे ये हमारी अर्जी है
मानो या ना मानो आगे सिर्फ तुम्हारी मर्जी है,
लक्ष्य बनाओ ऊँचा अपना, यश पाने को जुट जाओ
मोबाइल के गेम तुम्हें, देते जो लक्ष्य वो फर्जी है,
देख परखकर तुम भी अपना स्वप्न सुनहरा-सा बुन लो।
ये स्वतंत्रता की उड़ान है, अपने पंख यहाँ चुन लो।
तुमको पाना ही है यहाँ पर, नहीं कभी कुछ खोना है।
शिक्षा की सुगंध से महके, यहाँ का कोना-कोना है।
बरगद जैसी छाया इसकी, नभ जैसा विस्तार यहाँ,
इसके कद के आगे तो, पर्वत भी लागे बौना है।
सागर-सी गहराई इसमें, तुम जितने मोती चुन लो
ये स्वतंत्रता की उड़ान है, अपने पंख यहाँ चुन लो।
भविष्य तुम्हारा रचनेवाला पुस्तक का हर पन्ना है,
तुमको वीर सुभाष, भगतसिंह, गांधी जैसा बनना है।
देश बनाने की ख़ातिर, कई वीरों ने बलिदान दिए,
दुश्मन के आगे तुमको भी, शेखर जैसे तनना है।
पहन बसंती चोला तुम भी, क्रांतिगीत वाली धुन लो।
ये स्वतंत्रता की उड़ान है, अपने पंख यहाँ चुन लो।
नाम : निखिलेशसिंह यादव
जन्मतिथि : 21.10.1977
पता : शास्त्री नगर, गोविंदपुर रोड,
गोंदिया-441601(महाराष्ट्र)
सम्पर्कसूत्र : मोबाइल 9049516103
सम्मान : साहित्य सृजन सम्मान
प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

सागरवंदन्

Mon Mar 25 , 2019
.                              १ वरुण देव को सुमिर के,नमन करूँ कर जोरि। सागर  वंदन  मैं  लिखूँ, जैसी  मति  है मोरि।। .                              २ जलबिनथल क्या कल्पना, सृष्टा *रत्नागार*। वरुणराज तुमसे  बने , वंदन      *नीरागार*।। .                              ३ अगनित नदियां उमड़के,आती चली  *नदीश*। सब तटिनी तट तोड़नी, रम   जाती *बारीश*।। .                              ४ विविधरूप जीवन सरे,प्राणप्रिय […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।