दोस्तो, यह पत्र मैंने उन बच्चों के लिए लिखा था जिनको मैं साकेत इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ाया करता था । जब मैं वहाँ से लौटा तो यह पत्र उनके लिए मेरी तरफ से एक भेंट भर थी पर आज यह भेंट मैं सावर्जनिक कर रहा हूँ, तो आइए पढ़ते हैं स्नेह पगी पाती –
प्रिय छात्रो, प्यारे बच्चो !
दुनिया के इस रंगमंच पर मैं हमेशा से ही एक विद्यार्थी का किरदार निभा रहा हूँ और इसी किरदार को हमेशा निभाना चाहूँगा, शायद इसलिए कभी अपने आपको शिक्षक मान ही नहीं पाया, हमेशा ही बालकवत् सीखते रहने की चाह बनी रही…………।
अब दुनिया के इस रंगमंच पर आप कौनसा किरदार निभाना चाहते हैं, यह मुझे पता नहीं है पर जिस भी किरदार को निभाओ, उसे अच्छाई और सच्चाई के साथ निभाना ; क्योंकि जो होना होता है न, वो होकर रहता है और जो कुछ भी होता है, वो अच्छे के लिए ही होता है ।
अब देखो कुछ बातें बता रहा हूँ, शायद जीवन में कभी काम आ जायें तो सब यहाँ ध्यान देना –
पहली बात तो ये है कि जब भी किसी से कुछ सीखने का मौका मिले तो विनयपूर्वक व आदरभाव के साथ सीखना ।
और दूसरी बात यह कि जब कभी भी किसी को कुछ सिखाने का मौका मिले तो उसे वात्सल्यभाव पूर्वक सिखाना तभी सीखना-सिखाना सफल और सार्थक होगा ।
क्योंकि तीसरी बात यह है कि, जो डिग्रियाँ हैं न बच्चो ! वे तो हमारे शैक्षिक खर्चों की रसीदें मात्र हैं वास्तविक शिक्षा तो हमारे आचरण से ही झलकती है ।
इसलिए चौथी बात जो कही है कि “निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें ।” इसे याद रखना और आप भी अपने चरित्र का निर्माण करना नहीं भूलना ।
चरित्र निर्माण के लिए आपको मेरी पांचवी बात का विशेष ध्यान रखना होगा और वो यह कि आप अपनी गलतियों को छिपाएं नहीं अपितु उन्हें मिटाने का उपाय करें ; क्योंकि बहुत बार हम अपने मम्मी-पापा, दादा-दादी या घर के अन्य सदस्यों से अपनी गलतियों को छिपाने की कोशिश करते हैं कारण कि हमें डर होता है कि वो हमें डांट लगाएँगे, पर उनकी डांट से हमारी गलतियाँ सुधर जाती हैं अन्यथा आगे जाकर वे ही गलतियाँ अपराध में बदल जाती हैं जिसका हमें और हमारे परिवार को बहुत बड़ा दण्ड भुगतना पड़ता है । इसलिए अपने आप को अपने परिवार के सामने दर्पणवत् पारदर्शी रखना ।
और हां ! पांचवी बात पर तभी अमल कर सकोगे जब मेरी यह छठी बात मानोगे और वो ये है कि इसके लिए अपनी संगति अच्छी रखना क्योंकि जैसी संगत होती है, वैसी रंगत होती है; और वैसे भी दोस्त, किताब, रास्ता और सोच गलत हो तो गुमराह कर ही देते हैं, इसलिए इनका चुनाव बहुत सावधानी से करना ।
बस, अब और क्या लिखूं ? अंत में एक सातवी बात और कह देता हूँ कि निश्चित तौर पर आप सब कामयाब होना चाहते हैं और उसके लिए ही अपनी काबिलियत बढ़ा रहे हैं, लेकिन याद रखना कि कामयाब होने के लिए मात्र काबिल होना काफी नहीं है, सही नज़रिया भी उतना ही जरूरी है, इसी नज़रिये की एक नज़ीर तो देखो कि उन्हें कामयाबी में सुकून नज़र आया तो वो दौड़ते गये और हमें सुकून में कामयाबी नज़र आयी तो हम ठहर गये । अब बोलो ! ऐसे नज़रिये तुम्हें गूगल पर कहां मिलेंगे, बच्चो ! ऐसे नज़रिये तो बड़े-बुजुर्गों के पास ही मिला करते हैं इसलिए कहा है कि – कुछ पल बैठा करो घर में बुजुर्गों के साथ, क्योंकि हर चीज़ गूगल पर नहीं मिला करती ।
और हां ! जिस हिसाब से तुम लोग बातें करते हो उसके लिए यह आठवी बात भी याद रख लेना कि एक सार्थक चुप्पी हमेशा अर्थहीन शब्द की तुलना में बेहतर होती है ।
तुमको लगता होगा कि कितना बोलते हैं ये, थकते नहीं हैं क्या ?…….. वो तो हम जैसे बच्चे मिले हैं जो सुन लेते हैं……..वरना । यदि ऐसा सोचते हो तो जाते-जाते साहिर लुधियानवी साहब का एक शेर सुनते जाओ, वे कहते हैं कि –
कल और आएंगे नगमों की, खिलती कलियाँ चुनने वाले ।
हमसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले ।।
आप सभी अपने जीवन में अनंत-अनंत सफलताएँ प्राप्त करें, यही शुभकामनाएँ शुभाशीष है ।
साकेत जैन शास्त्री ‘सहज’
जयपुर(राजस्थान)