धूप जैसे बरसती रही प्यार की,
ज़िंदगी गुनगुनी-सी सिंकती रही..
तेरे वजूद की गर्मियाँ ही तो थीं,
सर्द मौसम में दुशाले-सी लिपटी रहीं।
धुंधली होती रही जो वक्त की गर्द से,
उन लम्हों की महक अब भी बाकी तो है..
भीनी-भीनी सही,पर मिट न सकी,
रुह के नूर में जैसे रिसती रही।
कुछ दबी सिसकियाँ,रुक गई कंठ में,
कुछ थमे अश्क जो बह चले चश्म से..
जो ठहर-सी गई वेदनाएं कहीं,
लम्हों की बदलियों-सी बरसती रहीं……।
#प्रियंका बाजपेयी
परिचय : बतौर लेखक श्रीमती प्रियंका बाजपेयी साहित्य जगत में काफी समय से सक्रिय हैं। वाराणसी (उ.प्र.) में 1974 में जन्मी हैं और आप इंदौर में ही निवासरत हैं। इंजीनियर की शिक्षा हासिल करके आप पारिवारिक कपड़ों के व्यापार (इंदौर ) में सहयोगी होने के साथ ही लेखन क्षेत्र में लयबद्ध और वर्ण पिरामिड कविताओं के जानी जाती हैं। हाइकू कविताएं, छंदबद्ध कविताएं,छंद मुक्त कविताएं लिखने के साथ ही कुछ लघु कहानियां एवं नाट्य रूपांतरण भी आपके नाम हैं। साहित्यिक पत्रिका एवं ब्लॉग में आपकी रचनाएं प्रकाशित होती हैं तो, संकलन ‘यादों का मानसरोवर’ एवं हाइकू संग्रह ‘मन के मोती’ की प्रकाशन प्रक्रिया जारी है। लेखनी से आपको राष्ट्रीय पुष्पेन्द्र कविता अलंकरण-2016 और अमृत सम्मान भी प्राप्त हुआ है।
सुन्दर भाव संंपन्न कविताएं।
आभार आदरणीय