जल कहता है
इंसान व्यर्थ क्यों ढोलता है मुझे
प्यास लगने पर तभी तो
खोजने लगता है मुझे ।
बादलों से छनकर मै
जब बरस जाता
सहेजना ना जानता
इंसान इसलिए तरस जाता ।
ये माहौल देख के
नदियाँ रुदन करने लगती
उनका पानी आँसुओं के रूप में
इंसानों की आँखों में भरने लगती ।
कैसे कहे मुझे व्यर्थ न बहाओ
जल ही जीवन है
ये बातें इंसानो को कहाँ से
समझाओ ।
अब इंसानो करना
इतनी मेहरबानी
जल सेवा कर
बन जाना तुम दानी ।
#संजय वर्मा ‘दृष्टि’
परिचय : संजय वर्मा ‘दॄष्टि’ धार जिले के मनावर(म.प्र.) में रहते हैं और जल संसाधन विभाग में कार्यरत हैं।आपका जन्म उज्जैन में 1962 में हुआ है। आपने आईटीआई की शिक्षा उज्जैन से ली है। आपके प्रकाशन विवरण की बात करें तो प्रकाशन देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाओं का प्रकाशन होता है। इनकी प्रकाशित काव्य कृति में ‘दरवाजे पर दस्तक’ के साथ ही ‘खट्टे-मीठे रिश्ते’ उपन्यास है। कनाडा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता की है। आपको भारत की ओर से सम्मान-2015 मिला है तो अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी सम्मानित हो चुके हैं। शब्द प्रवाह (उज्जैन), यशधारा (धार), लघुकथा संस्था (जबलपुर) में उप संपादक के रुप में संस्थाओं से सम्बद्धता भी है।आकाशवाणी इंदौर पर काव्य पाठ के साथ ही मनावर में भी काव्य पाठ करते रहे हैं।