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हमारे सुकून के ख़ातिर,
वो अपना सुकून खोते रहे ।
हम सो सकें बेफ़िक्रे,
वो अपनी नींदें खोते रहे ।।
जांबाज़ हैं,डटे हैं सरहद पर,
हमारे लिए वो ज़िंदगी खोते रहे ।
शहादत पर न अश्क़ बहाना यारों,
ताबूत उनके वतन के लिए रोते रहे ।।
किसी ने बेटा खोया है,
किसी का सुहाग उजड़ा है ।
बहनों की आंखों में बसा,
हर ख़्वाब टुकड़ा टुकड़ा है ।।
आबरू ए वतन के लिए,
वो अपना सब-कुछ खोते रहे ।
दाग़ न लगे देशभक्ति को,
वो क़तरा क़तरा लहू बहाते रहे ।।
बहुत सी उम्मीदें बहुत से ख़्वाब,
अब न जाने कब पूरे होंगे ।
सिसकियों में ढूंढना होगी ज़िन्दगी अब,
तुम्हारे बिन सदा हम अधूरे होंगे ।।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
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