धोरां री धरती अठै, चांदी सो असमान।
पाग अंगरखा केशरी, वीराँ रो अरमान।
वीराँ रो अरमान, ऊँटड़ै शान सवारी।
रेगिस्तान जहाज,ऊँट अब पशु सरकारी।
कहै लाल कविराय, पर्यटक आवै गोरां।
देवां रै मन चाव, जनमताँ धरती धोरां।
खाटो सोगर सांगरी ,कैर काचरी साग।
छाछ राबड़ी खीचड़ी,मरुधर मिनखाँ भाग।
मरुधर मिनखाँ भाग, चूरमा सागै बाटी।
दाल खीर गुड़ खाँड, चाय चालै परिपाटी।
कहै लाल कविराय, नामची सँगमर भाटो।
आन बान ईमान, मान रो इमरत खाटो।
धरती धोराँ री अठै ,रणवीराँ री खान।
इतिहासी गाथा घणी ,रजवाड़ी सम्मान।
रजवाड़ी सम्मान, किला महलाँ री बाताँ।
जौहर अर बलिदान, रेत रा टीबा गाता।
कहे लाल कविराय,सुनहली रेत पसरती।
आडावल री आड़, ढोकताँ मगराँ धरती।
निपजै मक्का बाजरी, सरसों गेहूँ धान।
भेड़ ऊँट गौ बकरियाँ,करषाँ रा अरमान।
करषाँ रा अरमान, खेजड़ी ज्यूँ अमराई।
सिर साँटै भी रूँख, बचाया इमरत बाई।
कहै लाल कविराय,माघ सी वाणी उपजै।
मारवाड़ रा धीर, वीर मरुधर मैं निपजै।
मेवाड़ी अरमान री, मारवाड़ री आन।
मरुधर माटी वीरताँ,कितराँ कराँ बखान।
कितराँ कराँ बखान,धरा या सदा सपूती।
रणवीराँ री धाक, बजी दिल्ली तक तूँती।
कहे लाल कविराय, बात पन्ना री जाड़ी।
चेतक राणा मान, नमन मगराँ मेवाड़ी।
देवा रा दर देवरा, लोक देवता थान।
खनिज अजायब धारती,धरती राजस्थान।
धरती राजस्थान, फिरंगी मान्यो लोहा।
घटी मुगलिया शान, बिहारी सतसइ दोहा।
कहै लाल कविराय, कृष्ण मीरा री सेवा।
मरुधर जनमै आय,लालसा करताँ देवा।
मरुधर में नित नीपजै,मायड़ जाया पूत।
बरदायी सा चंद कवि, पृथ्वीराज सपूत।
पृथ्वीराज सपूत, हठी हम्मीर गजब का।
दुर्गादास सुधीर, निभाये धर्म अजब का।
कहे लाल कविराय, ईश ही होवै हलथर।
राणा सांगा वीर ,जुझारू जावै मरुधर।
हजरत है दरगाह मैं, छाई खूब सुवास।
अजयमेरु गढ बीठली, पुष्कर ब्रह्मा वास।
पुष्कर ब्रह्मा वास, बैल नागौरी गायाँ।
जैपर शहर गुलाब, गजब ढूँढा री माया।
कहै लाल कविराय,भरतपुर नामी हसरत।
लोहागढ़ दे मात, फिरंगी मुगलइ हजरत।
जिद्दी हाड़ौती बड़ी, वाँगड़ बाँसै मेह।
बीकाणै जोधावणै , ढोला मारू नेह।
ढोला मारू नेह, कथा चालै ब्रज ताँणी।
मेवाती सरनाम, लटक आवै हरियाणी।
कहे लाल कविराय, संत भी पावै सिद्धी।
आन बान की बात,मिनख हो जावै जिद्दी।
बप्पा रावल री जमीं, चौहानी वै ठाट।
राठौड़ी ऐंठाँ घणी, शेखावत, तँवराट।
शेखावत, तँवराट, नरूका और कछावा।
जाट राज परिवार,दिये दिल्ली तक धावा।
गुर्जर मीणा वैश्य, ब्राहमन,माली ठप्पा।
सात समाजी नेह, निभावैं दादा बप्पा।
बागा, साफा पाग री, ऊँची राखण रीत।
नेह प्रीत मनुहार मैं, भली निभावण मीत।
भली निभावण मीत,मूँछ री बाँक गुमानी।
सादा जीवन वेश, बोल बोलै मर्दानी।
कहे लाल कविराय, नमन संतन् रै पागाँ।
अलबेला नर नारि, मोर कोयलड़ी बागां।
किलो चितौड़ाँ गर्व रो, कुंभलगढ़ सनमान।
लोहा गढ़ जालोर गढ़, तारागढ़ महरान।
तारा गढ महरान, किला छै घणाइ लूँठा।
हवा महल सा महल,डीग रा महल अनूठा।
कहे लाल कविराय, फूटरो हर गाँव जिलो।
मंदिर झीलाँ महल, हवेली हर पैण्ड किलो।
आबू दिलवाड़ै चढै, ऊपर मंदिर झील।
पचपदरै डिडवाणियै,खारी साँभर झील।
खारी साँभर झील,उदयपुर झीलाँ नगरी।
बैराठी अवशेष, आहड़ काली बंग री।
कहे लाल कविराय, करै दुश्मन नै काबू।
राजपूत उत्पत्ति, चार पर्वत यग आबू।
बात कहानी सभ्यता, देख नोह बागोर।
पुष्कर संग अरावली, दौसा गढ़ राजौर।
दौसा गढ़ राजौर, ओसियाँ आभानेरी।
पाटण, भाण्डारेज, विराट द्रौपदी चेरी।
कहै लाल कविराय,भानगढ़ रात रुहानी।
सरस्वती मरु रेत,सिन्धु की बात कहानी।
कोटा मेला दशहरा, मेला और अनेक।
लक्खी रामापीर सा, भिन्न जिलै सब एक।
भिन्न जिलै सब एक,घणा चरवाहा जंगल।
हेला ख्याल सुगीत, प्रीत रा सुड्डा दंगल।
कहै लाल कविराय, पुजै बालाजी घोटा।
शिक्षा क्षेत्र अनूप, नामची पत्थर कोटा।
नदियाँ बरसाती घणी, कम ही बरसै मेह।
चम्बल, माही सोम रो, बहवै सरस सनेह।
बहवै सरस सनेह, घणैई बांध बनाया।
टाँका नाड़ी खोद ,बावड़ी कूप खुदाया।
कहे लाल कविराय,बीत गी जीवट सदियाँ।
नहर बणै वरदान, जुड़ै जब सावट नदियाँ।
बाताँ राजस्थान री,और लिखे इण हाल।
जैड़ी उपजी सो लिखी, शर्मा बाबू लाल।
शर्मा बाबू लाल, जिला दौसा मैं रहवै।
सिकन्दरो छै गाँव,छंद कुण्डलिया कहवै।
राजस्थानी मान, विदेशी पंछी आता।
ढूँढाड़ी सम्मान, कथी मायड़ री बाताँ।
नाम– बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः