कलम

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niraj tyagi
रात की स्याही से मैंने दिन के उजाले लिखे।
रेत के रुके ढ़ेर पर बहते नदिया के धारे लिखे।।
लिखे गए चंद लफ्जो में दिल के छाले से दिखे।
जिन के सपने टूटे कुछ ऐसे मतवाले से दिखे।।
जिन आंधी तुफानो को गुमान था अपने पर,
वर्षा की बूंदों से मिल गए मिट्टी में उनके गुरुर,
ऐसे लोगो के कम ही सही,पर वो नजारे दिखे।
आईने को खुद ही अपना चेहरा दिखने लगा भद्दा।
जब हर गिरा इंसान , खुद को भला दिखाने लगे।।
कलम का काम है लिखना हर सच्चाई को,
चाहे फिर ये कलम लोगो के दिल दुखाने लगे।
लोग आएंगे,लोग जाएंगे,आना जाना कभी ना रुके।
अल्फाज लिख रहा हूँ मैं पन्नों पर कुछ इस तरह,
कि मैं रहूँ या ना रहूँ पर मेरे शब्दों को पढ़ना ना रुके।।
#नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

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