#नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
Read Time1 Minute, 7 Second
रात की स्याही से मैंने दिन के उजाले लिखे।
रेत के रुके ढ़ेर पर बहते नदिया के धारे लिखे।।
लिखे गए चंद लफ्जो में दिल के छाले से दिखे।
जिन के सपने टूटे कुछ ऐसे मतवाले से दिखे।।
जिन आंधी तुफानो को गुमान था अपने पर,
वर्षा की बूंदों से मिल गए मिट्टी में उनके गुरुर,
ऐसे लोगो के कम ही सही,पर वो नजारे दिखे।
आईने को खुद ही अपना चेहरा दिखने लगा भद्दा।
जब हर गिरा इंसान , खुद को भला दिखाने लगे।।
कलम का काम है लिखना हर सच्चाई को,
चाहे फिर ये कलम लोगो के दिल दुखाने लगे।
लोग आएंगे,लोग जाएंगे,आना जाना कभी ना रुके।
अल्फाज लिख रहा हूँ मैं पन्नों पर कुछ इस तरह,
कि मैं रहूँ या ना रहूँ पर मेरे शब्दों को पढ़ना ना रुके।।
Average Rating
5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%
पसंदीदा साहित्य
-
September 2, 2020
विद्या
-
January 31, 2021
शांतचित
-
January 16, 2018
करवटें गिन जाना
-
July 10, 2020
आगाज़