निर्भया : कविता संग्रह
लेखक : सुरेश सौरभ
प्रकाशक : नमन प्रकाशन, लखनऊ
मूल्य : 50
आवरण : पेपरबैक
‘निर्भया’ पुस्तक का नाम है या नाम है आक्रोश का? सामने टेबल पर रखी इस पुस्तक को पिछले कई हफ्तों से देख रही हूँ। कई बार पढ़ने को हाथ में लिया, दो मासूम, निश्छल आँखें सामने उग आई। उसकी आंखों में सपने छलक रहे थे। तभी अचानक उन आँखों में निराशा, फिर आक्रोश और फिर खून उतरने लगता है। मैं घबरा कर उसे फिर से टेबल पर रख देती हूँ। जब-जब इस पुस्तक को हाथ में लिया है, ऐसा बार-बार हुआ है। फिर अंततः मैंने मन पर अड़ी डाला और आज पढ़ डाली पूरी किताब।
पैंतालिस कविताओं यानि पैंतालिस विचार पुष्प से अच्छादित पन्ने युक्त इस पुस्तक के लेखक सुरेश सौरभ जी हैं। पत्रिकाओं में अक्सर पढ़ती रहती हूँ आपको। छिटपुट में किसी को पढ़ना और समग्र रूप से किसी लेखक की कृति को पढ़ने में बहुत फर्क है। इस कृति ‘निर्भया’ के जरिए लेखक वर्तमान हालातों पर अपने चिंतन मनन के विविध आयाम स्थापित करता है। वह लिखता है ‘जाने क्यों?’ और कहता है सिमरन के मन की बात को। वह लिखता है लड़की के सपने को जो उसे नींद में डराती है। आगे जब बढ़ती हूँ तो ‘मेरा गाँव’ मन को तरबतर कर देता है। कच्चे आम की चटनी के ईर्द-गिर्द गाँव की मिट्टी की खुशबू को लयबद्ध करते हुए सौंधी रचना है। यह साधारण लेखक की कलम नहीं है। जिज्ञासावश मैंने तुरंत पुस्तक को पलटते हुए पीछे का कवर देखा। परिचय पढ़ा। मन आदर भाव से भर गया। आपने करीब बारह किताबों पर काम किया है। यह पुस्तक उनकी साधना का प्रतिफल है। यह अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। ‘कुछ एहसास’ से गुजरी और ‘धरातल’ पर पहुँची तो पाया कि संवेदनाओं को ढोने वाला आदमी ही कविता का सुख महसूस कर सकता है।
मैं पढ़ रही हूँ ‘मियाद’ और परख रही हूँ खुद को। पनीली आँखों की टीस-खीज से निकल कर आने वाले विचारों को, उसके अंज़ाम से प्रभावित हूँ।
‘कच्चा माल’, ‘दुकाने’, ‘भूख’, ‘तलाश’ सबकी अपनी अलग भाव व्यवस्था है। सरल मन की सरस कविताएं मन के अनुकूल है इसलिए सब मोहक हैं।
मैं शब्दों में, उसमें निहित कथ्य में अपने बुद्धि के सहारे तलाश कर, पोषित कर रही हूँ अपनी सोचने की क्षमता को।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने लिखा है कि –
“काव्य की उक्ति चाहे कितनी ही अतिरंजित, दूरारूढ़ और उड़ानवाली हो उसका वाच्यार्थ चाहे कितना प्रकरणच्युत व्याहत और असम्भव हो उसकी तह में छुपा हुआ कुछ न कुछ योग्य और बुद्धिग्राह्य अर्थ होना चाहिए। योग्य और बुद्धिग्राह्य अर्थ प्राप्त करने के लिए चाहे कितनी ही मिट्टी, मिट्टी मैं तार्किकों की बुद्धि से कह गया, रसज्ञों और सहृदयों की दृष्टि से सोना या रत्न कहना चाहिए, खोदकर हटानी पड़े, उसे प्राप्त करना चाहिए।”
मैं पन्ने पर दर्ज विचारों को सोना और रत्न जानकर सुरक्षित रख रही हूँ ताकि विवेक जगा रहे और ‘निर्भया’ काव्य संग्रह की सार्थकता मेरे लिए परिपूर्ण रहें।
यह निश्चित ही एक अच्छी पुस्तक है। इस कृति को मुझे प्राप्त कराने के लिए कवि हृदय सुरेश सौरभ जी का हृदय से आभार प्रकट करती हूँ।
#सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर खीरी