जब नए कपड़े सिलवाते थे, और दिवारें रंगती थी,,
जब बड़ी बड़ी तस्वीरें हर घर में सजती थी,,
शादी ब्याह के जैसे घर में रौनक छा जाती थी,,
अब वो दिवाली नही है आती जो पहले आती थी,,
जब दिवाली की तारिख़ को बच्चे जबानी रटते थे,,
जब लम्बे डंडे की झाड़ू से घर के जाले हटते थे,,
जब दादी सदूंक से चीजे पुरानी टोहती थी,,
जब अलमारी से कोई चीज पुरानी पा जाती थी,,
अब वो दिवाली नही है आती जो पहले आती थी,,
तब लेन देन का दोर नही था, ना ही कोई उपहार था,,
बेशक कुछ भी नही था तब लेकिन दिलों में प्यार था,,
बाजारो की होड़ नही थी, लेकिन आवाजाही होती थी,,
तब खील बताशों की हांडी ही बड़ी मिठाई होती थी,,
जब हसीं ठिठोली से गांव की चौपालें भर जाती थी,,
अब वो दिवाली नही है आती जो पहले आती थी,,
तब कच्चे घरों में खुशीयां थी, मिट्टी के दियों से उजाला था,,
बड़ा बनने की होड़ नही थी, रूखा सूखा निवाला था,,
सम्पन्नता की चाहत में अब अपनो को बिसराया है,,
ऊंचे ख्वाबों की कीमत पर तन्हाई को पाया है,,
तब गले से लगकर ही आंखे भर जाती थी,,
अब वो दिवाली नही है आती जो पहले आती थी,,
#सचिन राणा हीरो