एक दिन देखा लोगों की लंबी कतार,
कडी धूप में पसीने से लतपत खडी थी।
किसीके दर्शन के लिए वो बेताब, बेचैन नजरों से इंतज़ार कर रही थी।
हमने गौर से देखा पर कुछ न दिखा।
दिल में एक आस जगी और हो गए उसमें हम भी शामिल।
जब नंबर आया तो देखा के एक मूरत सोने से सजी थी।
अंदर के अंधेरे से जब बाहर निकला तो देखा,
उसी कडकती धूप में,
एक बच्चा नंगा शरीर लिए रो रहा था,
उसके नाक से पानी भी बह रहा था,
उसका देह उस गरम रेत में तप रहा था।
किसीने उसे नहीं देखा।
हमने उसे उठाया,
पेड की छांव में लेजाकर साफ किया।
अच्छे कपड़े पहनाये,
और फिरसे कतार के पास बिठाया।
अब भी उसे किसीने नहीं देखा।
हमने सोचा, “क्या कमी रह गयी है?”
याद आया, इसे भी सोने से मढदो।
अपनी जमां पूंजी बेचकर सोना खरीदा,
उसी प्रकार उसेभी सजाया,
फिरसे कतार के पास बिठाया।
लेकिन आश्चर्य! अभीभी किसीने नहीं देखा।
फिर हमने हताश होकर तूलना की।
अब मेरे पास सिर्फ़ एक ही रास्ता था,
किसी तरह उस बच्चे को मैं पत्थर बना दूं।
नाम – विश्वजितसिंह दिलीपसिंह चंदेल
साहित्यिक उपनाम -विदी
वर्तमान पता – पुणे
राज्य – महाराष्ट्र
शहर – पुणे
शिक्षा – BE(Comp sci), MBA(Marketing), MA(English)
विधा – कविता
लेखन का उद्देश – लेखन ही मेरा उद्देश है।