हे ईश! नमन तुमको ,
मेरा सुहाग अमर कर दो।
मैं सुहागन रहूँ हरदम,
ऐसा तुम जतन कर दो ।
रण में विजय हो उनका ,
हिमालय का सर हो ऊँचा ।
साहस भरकर उनमें ,
उनकी जीत अमर कर दो ।
हे ईश! नमन तुमको ,
मेरा सुहाग अमर कर दो।
सरहद से ही चाँद दिखे मुझको,
तब ही तोड़ूँ “करवा चौथ”व्रत अपना ।
हँसता खिलता हो चेहरा उनका,
ऐसा तुम मुझको वर दो ।
हे ईश! नमन तुमको ,
मेरा सुहाग अमर कर दो
मैं व्रत अनवरत रहूँ ,
बस खुशहाल करो उनको ।
उर्मिला सी मैं त्याग करूँ ,
बस प्रीति मेरा उनके उर भर दो ।
हे ईश! नमन तुमको ,
मेरा सुहाग अमर कर दो।
नाम-पारस नाथ जायसवाल
साहित्यिक उपनाम – सरल
पिता-स्व0 श्री चंदेले
माता -स्व0 श्रीमती सरस्वती
वर्तमान व स्थाई पता-
ग्राम – सोहाँस
राज्य – उत्तर प्रदेश
शिक्षा – कला स्नातक , बीटीसी ,बीएड।
कार्यक्षेत्र – शिक्षक (बेसिक शिक्षा)
विधा -गद्य, गीत, छंदमुक्त,कविता ।
अन्य उपलब्धियां – समाचारपत्र ‘दैनिक वर्तमान अंकुर ‘ में कुछ कविताएं प्रकाशित ।
लेखन उद्देश्य – स्वानुभव को कविता के माध्यम से जन जन तक पहुचाना , हिंदी साहित्य में अपना अंशदान करना एवं आत्म संतुष्टि हेतु लेखन ।