तुम्हारी कमी आज खलती है भारी,
कभी खुद से खुद को पहचानों हे नारी ।
काली बदरियां कुछ इस तरह छायी,
व्यापारी ने मन चाही बोली लगायी ।
निश्चल भाव से करती रहती हो सेवा,
नहीं कोई जाने तुम्हारा समर्पण ।
हर अस्तित्व को जनने वाली हो तुम,
अपने वजूद के खातिर लड़ने वाली हो तुम ।
फिर खामोशी से इतना शहती हो क्यों ?
कांटों भरे जीवन में पलती हो क्यों ?
पहचानों अपने को तुम हो भी क्या ?
इतिहास कहता है सभी है गवाह ।
तुम्हीं पन्ना धाय बन किया दीप दान,
एवरेस्ट में तिरंगा फहरायी बछेंद्रीपाल ।
कल्पना ने कोलम्बियां में मापा आसमान,
रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के किये दांत खट्टे ।
गार्गी, इंदिरा बन लोहा मनवाई,
मत इतना सहो मीरा बन विष पी जाओं ।
नहीं राधा बन करके प्रेम को निभाओं,
जब – जब नारी को सीता बनाया गया
अनगिनत अग्नि परीक्षाओं को दिलाया गया ।
फिर अपनी जहां में नाम बनाओगी कब ?
काली का रूप धारण करके आओगी कब ?
जिसने नारी में माँ का ममत्व न झांका,
क्यों वेदना इतनी सहती रहोगी ।
सृजन हो तुम करती नर, मुनि और भगवान,
ऐसे महान नारी को सत – सत प्रणाम ।
पिता, पति, भाई, बेटा सबका रखती हो खयाल,
न बनों उर्मिला पलकें गीली ना करना
सुभद्रा, महादेवी, सरोजिनी सी सुरीली बनो
पूज्यनीयां हो तुम, बंदनीयां हो तुम
शिवाको जनने वाली जीजा माता हो तुम ।
भीड़ में भी अकेली वो काली हो तुम
होते अत्याचारों पर अकेली भारी हो तुम ।
परिचय-
नाम -डॉ. अर्चना दुबे
मुम्बई(महाराष्ट्र)
जन्म स्थान – जिला- जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा – एम.ए., पीएच-डी.
कार्यक्षेत्र – स्वच्छंद लेखनकार्य
लेखन विधा – गीत, गज़ल, लेख, कहाँनी, लघुकथा, कविता, समीक्षा आदि विधा पर ।
कोई प्रकाशन संग्रह / किताब – दो साझा काव्य संग्रह ।
रचना प्रकाशन – मेट्रो दिनांक हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई ) से मार्च 2018 से ( सह सम्पादक ) का कार्य ।
- काव्य स्पंदन पत्रिका साप्ताहिक (दिल्ली) प्रति सप्ताह कविता, गज़ल प्रकाशित ।
- कई हिंदी अखबार और पत्रिकाओं में लेख, कहाँनी, कविता, गज़ल, लघुकथा, समीक्षा प्रकाशित ।
- दर्जनों से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रपत्र वाचन ।
- अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में 4 लेख प्रकाशित ।