नारी शशक्तिकरण

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archana dube

तुम्हारी कमी आज खलती है भारी,

कभी खुद से खुद को पहचानों हे नारी ।

काली बदरियां कुछ इस तरह छायी,

व्यापारी ने मन चाही बोली लगायी ।

निश्चल भाव से करती रहती हो सेवा,

नहीं कोई जाने तुम्हारा समर्पण ।

हर अस्तित्व को जनने वाली हो तुम,

अपने वजूद के खातिर लड़ने वाली हो तुम ।

फिर खामोशी से इतना शहती हो क्यों ?

कांटों भरे जीवन में पलती हो क्यों ?

पहचानों अपने को तुम हो भी क्या ?

इतिहास कहता है सभी है गवाह ।

तुम्हीं पन्ना धाय बन किया दीप दान,

एवरेस्ट में तिरंगा फहरायी बछेंद्रीपाल ।

कल्पना ने कोलम्बियां में मापा आसमान,

रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के किये दांत खट्टे ।

गार्गी, इंदिरा बन लोहा मनवाई,

मत इतना सहो मीरा बन विष पी जाओं ।

नहीं राधा बन करके प्रेम को निभाओं,

जब – जब नारी को सीता बनाया गया

अनगिनत अग्नि परीक्षाओं को दिलाया गया ।

फिर अपनी जहां में नाम बनाओगी कब ?

काली का रूप धारण करके आओगी कब ?

जिसने नारी में माँ का ममत्व न झांका,

क्यों वेदना इतनी सहती रहोगी ।

सृजन हो तुम करती नर, मुनि और भगवान,

ऐसे महान नारी को सत – सत प्रणाम ।

पिता, पति, भाई, बेटा सबका रखती हो खयाल,

न बनों उर्मिला पलकें गीली ना करना

सुभद्रा, महादेवी, सरोजिनी सी सुरीली बनो

पूज्यनीयां हो तुम, बंदनीयां हो तुम

शिवाको जनने वाली जीजा माता हो तुम ।

भीड़ में भी अकेली वो काली हो तुम

होते अत्याचारों पर अकेली भारी हो तुम ।

परिचय-

नाम  -डॉ. अर्चना दुबे

मुम्बई(महाराष्ट्र)

जन्म स्थान  –   जिला- जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा –  एम.ए., पीएच-डी.

कार्यक्षेत्र  –  स्वच्छंद  लेखनकार्य

लेखन विधा  –  गीत, गज़ल, लेख, कहाँनी, लघुकथा, कविता, समीक्षा आदि विधा पर ।

कोई प्रकाशन  संग्रह / किताब  –  दो साझा काव्य संग्रह ।

रचना प्रकाशन  –  मेट्रो दिनांक हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई ) से  मार्च 2018 से ( सह सम्पादक ) का कार्य ।

  • काव्य स्पंदन पत्रिका साप्ताहिक (दिल्ली) प्रति सप्ताह कविता, गज़ल प्रकाशित ।
  • कई हिंदी अखबार और पत्रिकाओं में लेख, कहाँनी, कविता, गज़ल, लघुकथा, समीक्षा प्रकाशित ।
  • दर्जनों से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रपत्र वाचन ।
  • अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में 4 लेख प्रकाशित ।

 

 

 

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