तेज रफ़्तार दुनिया में किसी के पास वक्त ही नहीं रहा कि संबंधों का निर्वाह कर सके।दोस्ती के दायरे सिमटकर रह गए हैं।मित्रों के पास भी बाँटने को शेष है तो कुंठाएँ।
इन्सान अपना मन कैसे हल्का करे ?कहाँ से बटोरे वो शक्ति जो उसे निराश न करे ।
सही निर्णय ले सके ,इसके लिए जरुरी है स्वस्थ मानसिकता।डायरी इस क्षेत्र में आपकी अच्छी दोस्त साबित हो सकती है। अगर आप लिखना शुरू करें तो कई अन्य अनुभव भी प्राप्त कर सकते हैं।जैसे आपकी विचार शक्ति को दिशा लगने लगी हो ।आसपास की घटनाएं आपको क्षण भर की अशांति के बाद शांति देती है।और भविष्य में आपके लिए सबक भी बन जाती है।
कुछ लोगों की वजह से डायरी का वास्तविक स्वरूप समाज के आगे न आ सका।डायरी का उपयोग अर्ध प्रेमियों की सिर्फ़ प्रेम भावनाओं के वर्णन तक सीमित था। इसके बाद नेताओं ने जेल का सफर तय करने के लिए इसको अपना साथी बनाया ।
डायरी आपकी व्यक्तिगत पूंजी है ।या यो कहे कि आपकी अमानत है, उस पर आपका हक है, मगर उस पर ये लिखकर कि ‘कृपया इसे न पढ़े ‘ लिखकर एक गलती करते है, जिस चीज को दूसरों से परे रखना चाहते है उसको आकर्षित करने के लिए बचकानापन भी करते हैं क्यों? बेहतर ये होगा कि उसे संभाल कर हिफाजत से रखें ।
वैसे मेरी राय में अनुभव व्यक्तिगत नहीं होते, उसे आप सार्वजनिक पृष्ठभूमि देकर देखें तो आपके साथ-साथ समाज का भी भला होगा। अपनी डायरी के माध्यम से मैं एक छोटा-सा प्रयास कर रही हूं, उस अंधेरे को भगाने का जो हम सब में समा गया है। जिसमें बाह्य दूरियाँ तो कम हो गई है मगर मन से मन की दूरियाँ बढ़ गई है।
एक और शिक्षा का चौगुना प्रसार हुआ है तो दूसरी और उतनी ही अशिष्टता भी बढ़ी है। इंसान को वाहियात बना दिया है। उनके दिलोदिमाग में मगरुरी और दूसरे की मजाक उड़ाने का फितूर सवार है। ये तो
आप सचमुच मि.वाहियात से मिलेंगे तो जान सकेंगे।
मैं अपनी सहेली के यहाँ बैठी थी।वहाँ पड़ोस की और भी कुछ महिलाएं मौजूद थीं ।अचानक मेरी सहेली के कुत्ते ने भौंकना शुरू किया।ये संकेत था किसी अपरिचित के आगमन का।न जाने क्या वजह थी उस दिन कि आने वाले अपरिचित को देख कर कुत्ते ने कुछ ज्यादा ही शोर मचाया।
पहले तो अपरिचित व्यक्ति सहमा-सहमा खड़ा रहा फिर सहेली ने कुत्ते को डांटा ताकि उनसे पूछा जा सके कि किससे काम है? पर कुत्ते ने इतना शोर मचा रखा था कि कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। मेरी सहेली कभी अपने कुत्ते को देखती कभी अफसोस भरी नजरों से उस व्यक्ति को जिसके बहुत पीछे उनकी पत्नी भी खड़ी थी।
मैंने ही आगे बढ़कर पूछा ,”आप किससे मिलना चाहते है।”
“राकेश से ।मगर ये बताइए यह मेल है या फीमेल?युवक ने कुत्ते की ओर घूरते हुए प्रश्न किया। ”
सहेली ने जवाब दिया ,”फीमेल है। ”
“तभी इतना भौंक रही है।”मुँह बनाते उसने कहा और बेहूदा ढंग से हँसने लगा। इस हँसी में उसकी पत्नी ने बडे़ जोर शोर से साथ दिया।
युवक का अकेले हँसना किसी सीमा तक बर्दाशत करने के बाद पत्नी द्वारा साथ दिया जाना बर्दाशत न हुआ ।हम तो जैसे स्तब्ध ही रह गए थे।। शायद इसलिए उनके चले जाने का अहसास भी न हुआ।
राकेश जैसे ही घर में घुसा ,हमने उसे अपनी अदालत के कटघरे में खड़ा कर दिया।
सहेली ने उसे बताया ,”तेरा दोस्त आया था।”
“कौन -सा?”
“नाम नहीं पूछा। ऐसे लोगों के नाम पूछकर करना भी क्या है। ” नाराज होते सहेली ने कहा।
मैंने माहौल को थोड़ा हल्का बनाने के विचार से कहा, ” उसका नाम मुझे पता है मि वाहियात ।”
” क्या बात है ?साफ -साफ बोलो।दोनों बड़ी गुस्से में हो । ”
“तेरा जो दोस्त था , शायद पहली बार आया था, इसीलिए कुत्ते ने बहुत परेशान किया। कुत्ते का भौंकना देख वह बोला , “ये मेल है या फीमेल है? ”
“फीमेल ।”
“तभी इतनाभौंक रही है । ”
“ये कोई तमीज है,लेडिज से बात करने की। क्या सोचेगी वो लोग जो यहाँ बैठी थीं।यहीं ना कि इसके भाई के पास कैसे -कैसे अशिष्ट लोग आते है? ” सहेली बौखलकर अपने भाई से उलझ गई।
दोनों को उलझते देख मैंने बीच-बचाव करते हुए कहा, ” देखो राकेश , हम दोनों सहेलियाँ जागरूक नागरिक है। इस बार तो मि. वाहियात को छोड़ दिया ,क्योंकि उनके साथ उनकी नवविवाहिता पत्नी भी थी। ”
“पत्नी ! और तुम लोगों ने एक बार भी उन्हें बैठने को नहीं कहा ? ” राकेश ने आश्चर्य से पूछा ।
“ऐसे लोग क्या घर मेंं बिठाने के लायक है । “सहेली तिलमिलाकर बोली।
ये सवाल राकेश से ही नहीं आपसे भी ।
#कोमल वाधवानी ‘प्रेरणा’
उज्जैन(म.प्र.)