हमारे रामभरोसे,
होली के रंगों से
इस कदर घबराते हैं
जिस तरह,
कोई नई-नवेली दुल्हन
चौखट पार करने में
पल-पल हिचकिचाती है,
या नया-नया नेता
आश्वासन देने में
अटक-अटक जाता है।
हमने भी मन में ठान ली,
थोडी़ भंग छान ली..
उनके यहां जा पहुंचे,
हाँथों में रंग देख..
उनके चेहरे का रंग
फक्क हो गया,
हम बोले-
‘अजी,आप कहेंगे
तभी रंग मलेंगे’,
सुनकर उनका चेहरा
गुलाबी हो गया।
तभी हमें उनकी,
प्रियतमा की याद आई..
और हमारा मिजाज,
फिर रंगीन हो गया..
तब हम फिर चहके,
और फिर पूछ बैठे-
‘भाभी जी कहाँ हैं?’
सुनकर उनका चेहरा
फिर लाल हो गया,
वे बोले-‘अरे,रंग भी
कोई खेलने की चीज है।’
हम फिर बोले-
‘तुम्हारे स्याह चेहरे पर
कोई रंग नहीं फबेगा,
वे निराश होकर बोले-
फिर हमें क्यों
शर्मिंदा करते हो ‘कार्तिकेय’..
उनके शर्म में गढ़े
पीले चेहरे को देखकर,
हम अचंभित रह गए।
जब बिना रंग खेले,
इन पर इतने रंग हैं,
अगर रंग खेले तो…
यह सोच हमें अपने आप पर
और इन्द्रधनुषी रंगों पर
बेहद गुस्सा आया..
और हम बिना रंग खेले
अपने घर को
बै-रंग लौट आए।
#कार्तिकेय त्रिपाठी
परिचय : कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) में गांधीनगर में बसे हुए हैं।१९६५ में जन्मे कार्तिकेय जी कई वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। रचनाओं के प्रकाशन सहित कविताओं का आकाशवाणी पर प्रसारण भी हुआ है। आपकी संप्रति शास.विद्यालय में शिक्षक
पद पर है।
रंगपर्व होली की मस्ती लिए हुए सुन्दर अभिव्यक्ति।
बहुत -बहुत धन्यवाद भाई कपिल जी