बिछड़ी हूँ खुद से,फिर भी जिए जा रही हूँ मैं,
अपनी lतलाश अब भी किए जा रही हूँ मैं।
बे-वक़्त तेरी याद की आहट से जाग कर,
पेवंद लगे ख्वाब सिए जा रही हूँ मैं।
एक शोर बन के रह गई सच्चाइयाँ मेरी,
आवाज़ पे आवाज़ दिए जा रही हूँ मैं।
गुज़री कहीं पे शाम,कहीं रात और अब,
तेरे लिए ऐ सुबह जिए जा रही हूँ मैं।
जो दर्द बन के आँख से बहने लगा था कल,
फिर आज वही नाम लिए जा रही हूँ मैं।
अब नादिया मिलाएगा वो ही रफ़ीक़ से,
यूँ उस पे अब यक़ीन किए जा रही हूँ मैं।
#नादिया मसंद
परिचय : इंदौर के विजय नगर की निवासी नादिया मसंद साइकोलोजिस्ट और काउंसलर के अलावा नामवर लेखिका हैं,क्योंकि कई प्रकाशन उर्दू शायरी में ‘औरत का तसव्वुर(उर्दू)’, ‘खामोश सजदे (हिन्दी काव्य संग्रह)’ और ‘मेरांझिड़ी शाम (सिंधी काव्य संग्रह)’गिरहूँ (अनुवाद सिंधी में) आ चुके हैं। नादिया मसंद जी सिंधी,
हिन्दी,उर्दू और इंग्लिश में लेखन करती हैं। आपने मनोविज्ञान व उर्दू में एमएके साथ ही बी.एड. भी किया हुआ है। आपकी लेखनी की वजह से आपको बतौर क़द्र शानासी(सम्मान) मोहमद अली ताज पुरस्कार(उर्दू साहित्य अकादमी),साहित्य कलश की और से हरूमल रीझवानी राज्य स्तरीय पुरस्कार,बीबीसी लंदन की तरफ से ग़ज़ल प्रतियोगिता में पुरस्कार सहित विभिन्न साहित्यक और सामाजिक संस्थाओं की ओर से भी कई पुरस्कार मिले हैं।
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