टेसू खिले,कानन में,
महुआ महके,वन में..
लो फिर से,फागुन आया,
रंग लाया जीवन में।
आम बौराया,फिर आने को,
कोयल व्याकुल,है गाने को..
भ्रमर प्यासा,रस पाने को,
बसंत इतराया,यौवन में।
लो फिर से,फागुन आया,
रंग लाया जीवन में।।
महक उठे,सब बाग़,
गूंज उठे,अब फ़ाग..
विरह बड़ी,है आग,
अब चैन नहीं,नैनन में।
लो फिर से,फागुन आया,
रंग लाया जीवन में।।
भीड़ बढ़ी,पनघट पर,
नज़र अड़ी,नटखट पर..
क्या होगा,अगले पट पर,
कुछ छुपा,कान्हा के मन में।
लो फिर से,फागुन आया,,
रंग लाया जीवन में।।
क्यों मारी है,पिचकारी,
मेरी भीगी,अंगिया सारी..
ये धोखा है,गिरधारी,
रंग डाला,सब तन मन में।
लो फिर से फागुन आया,
रंग लाया जीवन में।।
मेरी सूनी पड़ी,फुलवारी,
रंग भर दे,अब वनवारी..
में रहूँ सदा,आभारी,
तेरा नाम बड़ा,जन जन में।
लो फिर से फागुन आया,
रंग लाया जीवन में।।
ओ करुणा के सागर,
ओ कान्हा नटवर नागर..
मेरी प्रीत से भर दे गागर,
तेरा नाम छुपा चितवन में।
लो फिर से फागुन आया,
रंग लाया जीवन में।।
#शशांक दुबे
परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में पदस्थ है| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय है |