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नगमा- ए ज़िन्दगी गुम चुके थे जिन्हे लब,
आज फ़िर गुनगुनाने का जी चाहता है..
खोल दूं आसमां से झरोखा जुड़ा,
और, पसर पर परिंदे का जी चाहता है..
ज़ुल्फ मेरी उड़ा ना ऐ पागल हवा,
संग तेरे बहक जाने का जी चाहता है..
जानती हूं मनाने न आएगा वो,
जानें क्यों रूठ जाने का जी चाहता है..
है यकीं इश्क पर तेरे कयामत तलक,
फिर भी क्यों आजमाने का जी चाहता है..
तेरी कुरबत में हर दिन का आगाज़ हो,
शाम आगोश पाने का जी चाहता है..
जनाजा – ए हुस्न साने पे जाए तेरे,
हसरतें, “मौत” पाने का जी चाहता है..✍🏻
परिचय:
नाम – मधु पांडेय
साहित्यिक उपनाम – मृदुला
जन्मतिथि – 17 मई 19- 80
वर्तमान पता – अनिल नगर, चितई पुर वाराणसी
शिक्षा – ग्रेजुएट इतिहास ऑनर्स
कार्य क्षेत्र -हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत
विधा – श्रृंगार रस,प्राकृतिक सौंदर्य, सामाजिक भ्रष्टाचार
अन्य उपलब्धियां- संगीत क्षेत्र में कई
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