उपभोक्ता का ही हो रहा उपभोग

1
0 0
Read Time8 Minute, 43 Second

akansha

पता नहीं क्यों, हर अच्छे कार्य और दिवस की शुरुआत आंदोलन से ही हुई है, चाहे वो महिला दिवस हो या आज उपभोक्ता दिवस| सबसे पहले उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत अमेरिका के रल्प नाडेर के नेतृत्व में हुई और तब १८६२ को अमेरिकी कांग्रेस में जॉन एफ कैनेडी द्वारा उपभोक्ता संरक्षण पर विधेयक मंजूर हुआ | इसके फलस्वरूप १५ मार्च को अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस की शुरुआत हुई | इसी कड़ी में अपने हिन्दुस्तान में उपभोक्ता के हितों की रक्षा हेतु श्री गोविन्ददास की अध्यक्षता में उपभोक्ता संरक्षण विधेयक का मसौदा अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने तैयार किया, जिसका उद्देश्य था उपभोक्ता के हितों की रक्षा व उन्हें शोषण से बचाना और उनको अपने अधिकारों और जिम्मेदारी हेतु जागरुक बनाना |इसी कड़ी में बीएम जोशी द्वारा एक स्वंयसेवी संगठन के रूप में १९७४ पुणे में  ग्राहक पंचायत की स्थापना की गई | प्रभावस्वरुप उपभोक्ता कल्याण परिषद का गठन हुआ जिसके परिणामस्वरूप ९ दिसम्बर १८९६ को उपभोक्ता संरक्षण विधेयक पारित हुआ |अत: आम उपभोक्ता के लिए सरल और सुगम बनाने हेतु संरक्षण नियम को १९८७ में संशोधित किया गया और ५मार्च २००४को अधिसूचित किया गया | फलस्वरूप भारत सरकार ने २४ दिसम्बर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस घोषित किया गया और अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस सन् २००० में पूरे भारत में पहली बार मनाया गया | आज भी प्रतिवर्ष १५ मार्च के दिन को हम सभी लोग विश्व उपभोक्ता दिवस के रूप मनाते हैं पर सच पूछो तो हम आज भी सावधानी नहीं बरतते |जब भी सोने के आभूषण खरीदो तो आभूषणों की हॉलमार्किंग,उत्पादों पर भारतीय मानक, आईएसआई का निशान और खरीददारी करते समय उत्पाद का अधिकतम खुदरा मूल्य, एमआरपी और उत्पाद की समाप्ति की तारीख भी देखें| सम्भव हो तो दुकानदार को भी जागरुक करें कि दोषी पाए जाने पर एक माह से तीन माह तक की कैद और १०,००० रुपए तक का जुर्माना भी हो सकता है|  यहाँ तक ही नहीं, धारा २७ के तहत कारावास और धारा २५ के तहत कुर्की भी हो सकती है |देश में इतने मजबूत कानून के बावजूद भी उपभोक्ता रोज छले जाने पर विवश हैं | देश में लगाए गए बिजली के इलेक्ट्रोनिक मीटर इतना तेज भाग रहें हैं कि बन्द पड़े घर में बिजली का बिल केवल इण्डीकेटर जलने के कारण दो हजार आया |सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि उपभोक्ता बहुत मेहनत से कमा रहा है, जब ऐसा हो तो वो क्या करे | आज दुकानों पर जो खुले अचार बिक रहे हैं उनमें इतना प्रिजर्वेटिव होता है कि लोगों को भयाभय अलसर हो रहा है | इन सभी चीजों की जाँच क्यों नहीं होती ? आज अरहर की दाल २०० रूपए मंहगी होने के बावजूद शुद्ध नहीं उसमें चटरी और मटरी की दाल मिला दी जाती है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नही है |चने की दाल के बेसन में मटर की दाल का बेसन खूब बिक रहा, पिस्ता में हरे रंग से रंगी मूँगफली, शक्कर में छोटावाला साबूदाना मिला और दूध से क्रीम गायब और आरारोट मिला हुआ, सब्जी में परवल धोओ तो हरा रंग निकलता है | पालक उबालो तो बदबूदार झाग बनता और साबुन लेने जाओ तो झाग ही नहीं निकलता है |हद तो अब हो गई जब सरसों का तेल डालडे की तरह जम रहा और रिफाईण्ड से बनाओ तो सब्जी में वो स्वाद नहीं है| अब दवाई लेने जाओ तो पूछते हैं कि एक रुपए वाली गोली दूँ या पाँच वाली, नकली दवाओं का बाजार भरा पड़ा है, खाँसी का सीरप लेने जाओ तो वह किसी नशे से कम नहीं आदमी को आदत हो जाती है| पेट दर्द,कब्ज और भूख बढ़ाने वाले ना जाने कितने ही नकली उत्पाद हमको दीमक की तरह चट रहें हैं |देखो, कितने ही लम्बाई बढ़ाने वाले, मोटापा कम करने वाले उत्पाद बाजार में हैं जो केवल उपभोक्ता को भंयकर बीमारियों की चपेट में ले रहें हैं और ले चुके हैं | आपने देखा होगा दोस्तों, ट्रेन में जो चाय बिकती है और जो खुली बाल्टियों में चने बिकते हैं बताईए वो कितने स्वच्छ और सुरक्षित हैं ? गली, चौराहे और नुक्कड पर जो हाँथ डुबो- डुबो कर स्टील की प्लेट में जो पानी पूरी मिलती है, आरारोट में लिपटी आलू की टिक्की मिलती है बोलो कितनी शुद्ध होती है | खाने- पीने की वस्तुएं खुलेआम खुली बिक रहीं है,चाहे गुड़ हो चाहे टोस्ट हों चाहे कटे फल हों क्या ये सब बीमारी के दूत नहीं हैं बोलो |आज जमाखोरी, मिलावटखोरी, हर-हाल में  जल्दी अमीर बनने की लालसा ने  उपभोक्ता का ही उपभोग करना शुरू कर दिया है, और विडंबना यह है कि हम विवश हैं | हम ये नहीं कह रहे कि गरीब ठेले वाले का उचित प्रबंध हो तो वो ठेला ही क्यों लगाए | हम बस इतना चाहते हैं कि ठेलों पर जो भी खाने-पीने की वस्तुएं बिकती हैं उन पर ना जाने कितना प्रदूषण रुपी कार्बन जमा होता है, यह सोचते हुए वो पर्यावरण की दृष्टि से पारदर्शी कागज की बड़ी-सी शीट से ढँककर ही बेचें जो सरकार की तरफ से निशुल्क मिलें और जो बिक रहा ऊपर उसका नाम लिखा हो| इससे उपभोक्ता सुरक्षित हो सके और देश के महान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का स्वच्छ और सुरक्षित भारत का सपना पूरा हो सके |हम सरकार से इतना निवेदन करते हैं कि यह स्कूलों और कॉलेजों की किताबों में इसे एक पाठ या विषय के तौर पर जोड़ दिया जाए, ताकि देश का हर बच्चा अपने अधिकारों के प्रति जागरुक हो सके | ये भी निवेदन करते हैं कि देश का राष्ट्रीय खाद्य जाँच विभाग हर दिन सजग,सचेत और क्रियाशील हो जिससे हलवाई गाजर के हलवे में पुरानी सड़ी और मक्खी बैठी मिठाई की मिलावट करने में सौ बार सोचे,जिससे उपभोक्ता की मेहनत की कमाई मूल्यहीन साबित ना हो और जिससे हम और हम खाद्य पदार्थों के रूप में बीमारियाँ घर ना ला सकें और अपने परिवार की मुस्कुराहट से समझौता न करना पड़ सके| पूरे देश में उपभोक्ताहित के लिए टोल फ्री नम्बर १८००-११-१४००० डायल कर प्रत्येक उपभोक्ता अपनी समस्या का उचित समाधान पा सकता है |अत: दोस्तों  अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस तभी सफल माना जाएगा, जब हम भी देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएं| आइए, खुद भी जागरुक बनें और लोगों को भी जागरुक बनाएं |

                                                                                     #आकांक्षा सक्सेना

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

One thought on “उपभोक्ता का ही हो रहा उपभोग

  1. उपभोक्ताओं को जागरूक करता संदेशप्रद जानकारी देता लेख।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

सजा और मजा

Wed Mar 15 , 2017
जिस तरह नशा, शराब में नहीं.. अपने-आप में होता है, ठीक उसी तरह मजा किसी वस्तु; स्थिति या परिस्थिति में नहीं,अपने-आप में होता है। जिन्दगी का मजा लेना भी, एक फन,एक हुनर अदाकारी, कलाकारी है, जो हर किसी के बस की बात नहीं है। उत्सव का आनन्द, मौसम की मस्ती.. […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।