औरत होने के लिए…
कितने पशेमान कपड़े पहने हैं
उस आसमानी लड़की ने।
जो फुदक रही है आसमान की
छाती पे,
झूम रही है मेहताब के सूफ़ी गीतों से..
खेल रही है आकाशगंगा के अनगिनत खिलौनों से।
एक दिन जिसे जमीं की कूचा आके,
बनना है कल की संघर्षशील औरत..
पहनना है हया के मैले-कुचले कपड़े,
खेलना है नंगी लाशों के खिलौनों से।
होना है हवस के दरिंदों के हवाले,
जीना है घुंट-घुंट के..
मरना है सहम-सहम के।
आखिर क्यूं समझ नहीं पाती एक,
दुनिया के पाशविक जादू को..
क्यूं पढ़ नहीं पाती है,
मिरात के पीछे छिपी संगीन तस्वीरों को।
क्यूं बन जाती है,
एक औरत संघर्ष की प्रतिमूर्ति..
क्यूं ताउम्र जुझती रहती है
अपने अस्तित्व के लिए औरत।
औरत क्यूं अपने आंचल की आखरी खुशी भी,
बांट देती है असंख्य लोगों को..
और क्यूं औरत एक दिन हार के,
लौट जाती है अपनी उसी अफ़लाक दुनिया में।
कितनी असीम ज़हमत सहती है औरत,
झोंक देती है कई सदियां..
नाप देती है अनंत आसमानों को,
तय करती है फ़लक से जमीं की दूरी।
हाय!
कितनी दूरी नापती है,
कितना संघर्ष करती है
एक औरत
औरत होने के लिए।
#माहीमीत
परिचय : माया नगरी मुम्बई में ‘माहीमीत’ नाम से लिखने वाले श्याम दाँगी मध्य प्रदेश के होकर इंदौर में पत्रकारिता में भी हुनर दिखा चुके हैं। फिलहाल भी यह मुम्बई के अनेक पत्रों में सक्रिय लेखन से जुड़े हैं तो पटकथा लेखन में लगातार सक्रिय हैं।इनकी लिखी हुई कहानियाँ ‘सावधान इंडिया’ और ‘क्राइम पेट्रोल’ में आ चुकी हैं। यह थिएटर में भी सक्रिय हैं और हाल ही में मंटो पर एक नाटक किया था, जिसमें मंटो का किरदार इन्होंने ही निभाया था।