विद्रोह

0 0
Read Time3 Minute, 40 Second
kirti jayaswal
ले चलो ऐ ‘अश्व’ मुझको उस धरा के छोर,
पाप रहित क्षेत्र हो; तम न हो; हो भोर।
भ्रमण करता ‘क्षेत्र’ में; गर्दभ-मति लिए हुए,
पशु,प्रेत बन भटक रहा अज्ञात; शून्य से परे।
देखता हूँ ‘मन की हलचल’ लोचन का प्रकाश ले,
कह न ‘बधिर’; सुन सका न-गूँज अन्तर्रात्मा की।
था विचार चल पडूँ-‘सत्य मार्ग ओर’;
है ‘परिश्रम’; चल पड़ा मैं ‘तम मार्ग ओर’
तम में आकर सब ही ‘गुह्यतम’; खुल सका न ‘भेद’
खुद को खोया; अश्व खोया; छूट गई थी डोर।
तम में खा-खा स्पंद; ‘नव-ज्योति’ में आया;
‘नव-ज्योति’ में आया और अश्व को पाया।
बोला उससे-‘अश्व मुझको! ले चल नगर ओर’;
‘नगर’ में आया; ‘चित्र’ विचित्र ही पाया।
मानव ‘मशीन’! या ’मशीन’ मानव’!.. रहस्य ही रहा।
बम ‘मनुज! या ‘मनुज ‘बम’!..कुछ समझ न यह सका।
भू,वात, शून्य ‘उच्छ्वास’ हैं भरतें;
‘विज्ञान’ का तूने ‘प्राचीर’ बनाया;
तोड़ दे प्राचीर को वो श्वांस भरेंगे,
त्यज मोह; राह ये छोड़; ‘ध्वंस’ करेंगे।
ले चलो ऐ अश्व मुझको ‘वन-हरित’ उस ओर,
‘विपिन’ में आया; मन ‘शांति’ को पाया;
‘विहग-कलरव’ छोर-छोर ‘गूँज’ है मचतीं,
बिल्लियों को बिल्लियां ही नोंचती रहतीं।
‘सर्प’ जैसे ‘शशक’ का अनुसरण करता;
‘शशक’ गर्दन मोड़ फिर-फिर दौड़ता रहता
वृक्ष से जा भिड़ा; फँस गया ‘झाड़ियों’ में;
कंटकों में पैर थें; शिकार बन गया।
‘सर्प’ तो यहां भी हैं; ‘गेंडुरी मारे हुए,
लगता करते ‘अनुसरण’; ‘शिकार’ करेंगे।
‘सर्प’ अतिथि बनकर आतें; हैं ‘अतिथि-सत्कार’ करवातें,
बनकर ‘स्वजन’; डसकर ‘स्वजन’ राज करेंगे।
ले चलो ऐ अश्व! मुझको उन युगों की ओर,
जहां ‘श्री रामचंद्र’ और थे ‘माखन चोर’।
‘त्रेतायुग’ में शांति है; पशुओं में मित्रता है,
‘अनुज’ यहाँ ‘अग्रज’ का विरोध है करता
क्योंकि वह ‘असत्य संगी’; ‘सिया’ का हरण किया,
खो दिया ‘भ्राता’ उसने; असत्य खो दिया;
भेद कह दिया(कि रावण की नाभि में अमृत है)
सत्य विजय  हो गया,
विजयदशमी पर्व रूप याद बन गया।
युध्द ‘कुरुक्षेत्र’ में; जन ने संहार किया,
जन ने ‘स्वजन’ पर ही ‘वार’ है किया;
युध्द में पितामह हैं; भ्राता,चाचा,पुत्र हैं;
‘शर’ से स्वजन पर प्रहार है किया;
क्योंकि वे ‘असत्य संगी’; सत्य से विद्रोह जो
खो कर ‘स्वजन’ को है ‘सत्य’ संग रहा।
कौणप कलयुग के ऊँचे हैं आसन पर,
‘भ्रष्टाचारी’ कलयुग का शैतान है बना;
‘दीन’ का रक्त चूसे; रक्त में वृद्धि करता,
‘कंगाल’ करके ‘कंकाल’ कर दिया;
कृष्ण! हे राम! तू कलयुग में ओझल
नारायण जी! फिर से अवतार ले लो॥
#कीर्ति जायसवाल
इलाहाबाद
(शब्दार्थ:गर्दभ=गधा,शून्य=ईश्वर,बधिर=बहरा,  गुह्यतम=छिपना,स्पंद=झटका,मनुज=मनुष्य,वात=हवा, शून्य=आकाश,प्राचीर=दीवार,विपिन=जंगल, शशक=खरगोश,कौणप=राक्षस)

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

 *पर्यावरण पच्चीसी* 

Mon Aug 6 , 2018
1. पृथ्वी पर चहुँ ओर है,सबहि आवरण सोय। पर्यावरण कहत उसे, मीत सुनो सब  कोय।। 2. क्षितिजलपावक है गगन,बहती साफ समीर। पर्यावरण  वही  बनत, जीवन  और  शरीर।। 3. पेड़ और वन बाग से , बिगड़े नहि ये साज। शुद्ध रहे पर्यावरण, करलो सब अस काज।। 4. खेत-खार  मैदान में , […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।