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ज़ुल्म होता रहे और आँखें बंद रहें
ऐसी आदत किसी काम की नहीं
बेवजह अपनी ही इज़्ज़त उछले तो
ऐसी शराफत किसी काम की नहीं
बदवाल का नया पत्ता न खिले तो
ऐसी बगावत किसी काम की नहीं
मुस्कान की क्यारी न खिल पाए तो
फिर शरारत किसी काम की नहीं
तुम्हें छुए और होश में भी रहें तो
तेरी नज़ाकत किसी काम की नहीं
#सलिल सरोजनई दिल्ली
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