प्रेम कहानी

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vivek kvishwar

केसरिया आखर से मैंने लिक्खी अपनी प्रेम कहानी
तुम अपने अधरों से उसको सिंदूरी कर दो तो जानूं।
निर्जीव सभी अक्षर थे; प्राण-प्रतिष्ठा की भावों ने,
इस अनुष्ठान के प्रसाद को स्वीकार करो तो मैं जानूं।

सूर्योदय से गोधुली तक; कड़ी धूप में रोज़ सुलगता
रात उतरती आँगन में; अमृत-रस है मुझको छलता,
ऋतुचक्र सभी मेरे मन पर व्रण दे जाते आशाओं के,
तुम स्पर्शों से चन्दन जैसा लेप लगाओ तो मैं जानूं।

अरे ज़रा सी मेरी चोपड़ी; पाप-पुण्य का खाता फैला,
जीवन है तलवार दुधारी; गिरूँ कहीं हो आँचल मैला,
देख रहा हूँ मैं खुद को; खुद से ही होकर निराश सा,
निस्तेज हुई इन आँखों में स्वप्न टांक दो तो मैं जानूं।

तुम महुए का पेड़; कोई मधुशाला हो या गंगाजल हो
मैं तृष्णा हूँ हर चातक की; कैसे कंठ मेरा गीला हो,
सूखे पठार पर स्वाति-बूँद के गिरने से क्या होता है,
स्नेहसिक्त अपनी आँखों से गीला कर दो तो मैं जानूं।

नाम: विवेक कवीश्वर
नयी दिल्ली
सम्मान:
प्रकाशन: 1 काव्य-संकलन
1 ग़ज़ल और नज़्म संकलन
1 दोहा और हाइकु संकलन
1 नाटक / फिल्म स्क्रिप्ट
8 काव्य के साझा संकलन

matruadmin

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कैसी हो गयी हैं जिन्दगी

Sat Jul 7 , 2018
ना कुछ सोचो ना कुछ करो, क्योंकि चाय के प्यालों से होंठों का फासला हो गयी है जिंदगी। भूख से बिलखती रूहों को मत देखो शान-औ-शौकत के भोजों१  में खो गयी है जिंदगी। बस सहारा ढूढ़ते, सड़क पे फट गए जूतों से क्या सुबह शाम बदलती गाड़ियों का कारवाँ हो गयी है जिंदगी। तन पे फटे हुए कपडे मत देखो नए तंग मिनी स्कर्ट सी छोटी हो गयी है जिंदगी। पानी की तड़प भूल कर महगीं शराब की बोतलों में खो गयी है जिंदगी। फुटपाथ पे सोती हजारों निगाहों की कसक छोड़ के इक तन्हा बदन लिए, हजारों कमरों में सो गयी है जिंदगी। हजारों सवाल खामोश खड़े; बस सुलगती सिगरेट के धुएं सी हो गयी है जिंदगी।                      #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 419

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।