आँख फाड़ देने वाला ऐसा सच कि,पढ़कर आप भी आश्चर्यचकित रह जाएंगे ? भारत में कुल ४१२० विधायक और ४६ एमएलसी हैं अर्थात कुल ४५८२ विधायक हैं। प्रति विधायक वेतन-भत्ता मिलाकर प्रति माह एक पर २ लाख का खर्च होता है,अर्थात ९१.६४ करोड़ रुपया प्रति माह। इस हिसाब से प्रति वर्ष लगभग ११०० करोड़ रुपए लगते हैं। भारत में लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर कुल ७७६ सांसद हैं। इन सांसदों को वेतन-भत्ता मिलाकर प्रति माह ५ लाख दिया जाता है। अर्थात कुल सांसदों का वेतन प्रति माह ३८.८० करोड़ लाख है। हर वर्ष इन सांसदों को ४६५.६० करोड़ रुपया वेतन भत्ते में दिया जाता है,अर्थात भारत के विधायकों और सांसदों के पीछे भारत का प्रति वर्ष १५.६५ अरब करोड़ ६० लाख रुपए खर्च होता है।
ये तो सिर्फ इनके मूल वेतन-भत्ते की बात हुई। इनके आवास,रहने,खाने, यात्रा भत्ता,इलाज और विदेशी सैर-सपाटा आदि का का खर्च भी लगभग इतना ही है। अर्थात लगभग ३० अरब रुपए खर्च होता है इन विधायकों और सांसदों पर। अब गौर कीजिए इनकी सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर,एक विधायक को दो सुरक्षाकर्मी और एक सेक्शन हाउस गार्ड यानी कम-से-कम ५ पुलिसकर्मी और यानी कुल ७ पुलिसकर्मी की सुरक्षा मिलती है। ७ पुलिसकर्मी का वेतन लगभग (२५ हजार रुपए प्रति माह की दर से) १.७५लाख रुपए होता है। इस हिसाब से ४५८२ विधायकों की सुरक्षा का सालाना खर्च ९ अरब ६२ करोड़ २२ लाख प्रति वर्ष है।
इसी प्रकार सांसदों की सुरक्षा पर प्रति वर्ष १६४ करोड़ रुपए खर्च होते हैं। जेड श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त नेता, मंत्रियों,मुख्यमंत्रियों,प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए लगभग १६ हजार जवान अलग से तैनात हैं,जिनपर सालाना कुल खर्च लगभग ७७६ करोड़ रुपया बैठता है। इस प्रकार सत्ताधीन नेताओं की सुरक्षा पर हर वर्ष लगभग २० अरब रुपए खर्च होते हैं। अर्थात हर वर्ष नेताओं पर कम-से-कम ५० अरब रुपए खर्च होते हैं। इन खर्चों में राज्यपाल,भूतपूर्व नेताओं की पेंशन,पार्टी के नेता,पार्टी अध्यक्ष, उनकी सुरक्षा आदि का खर्च शामिल नहीं है। यदि उसे भी जोड़ा जाए तो कुल खर्च लगभग १०० अरब रुपया हो जाएगा। अब सोचिए,हम प्रति वर्ष नेताओं पर १०० अरब रुपए से भी अधिक खर्च करते हैं,बदले में गरीब लोगों को क्या मिलता है, क्या यही है लोकतंत्र ? ऐसे में एक सर्जिकल स्ट्राइक यहाँ भी बनती है। भारत में दो कानून अवश्य बनना चाहिए,पहला– चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध,यानी नेता केवल टेलीविजन माध्यम से प्रचार करें। दूसरा-नेताओं के वेतन पर प्रतिबंध,यानी इन्हें देशभक्ति करना है तो,निःशुल्क करें। प्रत्येक भारतवासी को जागरुक होना ही पड़ेगा और इस फिजूलखर्ची के खिलाफ बोलना भी पड़ेगा। गाँधी जी ने तो लिखा है कि, देश में सरकार नाम की संस्था होनी ही नहीं चाहिए, है न सुप्रीम कोर्ट। कितनी बड़ी विडम्बना है हमारे देश के राजनीतिक लोगों की कि,जितना भी पैसा मिले उनके लिए उतना ही कम है।