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रंगरसिया छलिया ओ कान्हा,
अब तुम कहाँ गए।
फैला चारों ओर है अंधेरा,
अब तुम कहाँ गए।
यमुना सी यमुना न रही,
गोकुल सा गोकुल न रहा।
बृन्दावन की हरियाली,
सब कुछ अब है बदल रहा।
कहाँ गए तुम कान्हा,
नक्से सारे बिगड़ गए।
न रिश्तों में प्यार है बचा,
न अपनों में अपनापन।
सब कुछ पैसा बन गया,
हाय कान्हा अपनापन।
आज जरूरत है कान्हा,
इस धरती को तुम्हारी।
आ जाओ कीसी भी रूप में,
सत्य पर झूँठ है आज भारी।
रंगरसिया छलिया ओ कान्हा,
अब तुम कहाँ गए।
फैला चारों ओर है अंधेरा,
अब तुम कहाँ गए।
#विपिन कुमार मौर्या
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