*धर्मपत्नि*

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babulal sharma

यह हिन्दुस्तान है भैया,
यहाँ रिश्ते मचलते है।
त्याग रिश्तों में होता है,
रिश्ते भीे छलकते हैं।

बहुत मजबूत हैं रिश्ते,
मगर मजबूर भी देखे।
कभी मिल जान देते थे,
गमों से चूर भी देखे।

‘करें सम्मान नारी का”
करे दुनिया ये अय्यारी।
ठगी जाती हमेशा से,
यूँ  ही संसार भर नारी।

धर्मपत्नि,गृहिणी और
उसे अर्धांगिनी कह कर।
ठगी नारी से करते है,
बराबर हक की वो कहकर।

मगर जब तलाक होते है,या
विवाह-विच्छेद करते है।
वो हक फिर क्यों नहीं रहता है,
जिसकी बात करते हैं।

हक की बात तो छोड़ो,
नित्य अपमान सहती है।
धर्मपत्नि जिसे कहते,
वही फाके भी करती है।

नारी की ठगाई को,
मधुरतम नाम यह पाला।
जुबां मीठी से पत्नि को,
धर्मपत्नि कह डाला।

पड़ा नहीं धर्म से पाला,
वे ही धर्मात्मा होते।
गमों के बीज की खेती,
दिलों के बीच हैें बोते।

सफर में यूँ ही एक साथी ने,
मुझसे परिचय जाना था।
कहा पत्नि को धर्मपत्नि,
क्योंकि सादर बताना था।

पत्नि के सामने मैने,
सफर में ‘कहर पाला” था।
पत्नि के भाई को मैंने,
कहा जब धर्मशाला था।

क्या क्या बीत गई मुझ पर,
ये  सोच लो यारों।
उसी दिन से “अलविदा”जी,
वो कह गई पारो।

तभी से डर मुझे लगता है,
इस नाम से भाई।
समझ मेरे नहीं आया,
ये,धर्मपत्नी, धर्मभाई।

सुने हैं,धर्म पिता,धर्म माता,
धर्म बहनें,धर्मभाई।
धर्मपत्नि की यह उपमा
कहाँ से किस तरह आई।

पत्नी का धर्मपति नहीं मैं,
मगर हूँ भाग्यशाली।
न धर्मपत्नी का संकट है,
धर्मशाला न धर्मशाली।

नहीं मानता बंधु मैं इस
धर्मपत्नि की उपमा को।
मेरे घर की ये गृहिणी है,
संभालूँगा मैं सुषमा को।

मानो तो मेरी मानो,
मगर मन बात नहीं माना।
यहाँ धर्मपत्नि आधी हकीकत है,
आधा है फ़साना।

नाम- बाबू लाल शर्मा 

साहित्यिक उपनाम- बौहरा

जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)

वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा  (राज.)

राज्य- राजस्थान

शिक्षा-M.A, B.ED.

कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा

सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार

लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे

सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत

अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ   अभियान

लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः

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