बुढ़ापा

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paras nath
उनके चेहरे को देखा तो,अपना भी कल नजर आया ।
वो चेहरे पर झुर्रियां,
होठों पर कपकपी,
पिचके हुए गाल,
उफ़! आँखों में बेवशी ।
लाख कोशिश की हमने,पर बुढ़ापे का कोई न हल नजर आया।
उनके चेहरे को देखा तो,अपना भी कल नजर आया ।।1।।
श्वेत अधझड़े बाल,
दाँतों का न साथ,
वो लड़बड़ाती जीभ,
दीन- हीन बोल,
परिवार की बेरुखी भी,वृद्धजन पर आजकल नजर आया ।
उनके चेहरे को देखा तो ,अपना भी कल नजर आया  ।।2।।
लड़खड़ाते पांव,
घुटनों का दर्द,
झुके-झुके कमर,
एड़ियों का घाव,
छड़ी का सहारा, हर पल नजर आया ।
उनके चेहरे को देखा तो, अपना भी कल नजर आया ।।3।।
फूलते साँस,
कांपते हाथ,
पाचन-उत्सर्जन का न भरोसा,
चुल्लू भर पानी की आशा,
अपनों के तिरिस्कार से,संस्कारों का फल नजर आया ।
उनके चेहरे को देखा तो , अपना भी कल नजर आया ।।4।।
हृदय में प्रेम,
तन में लाचारी,
कर ईश्वर को याद,
करते मृत्यु की फरियाद,
मन की पीड़ा से ,जीवन दलदल नजर आया।
उनके चेहरे को देखा तो, अपना भी कल नजर आया ।।5।।

नाम-पारस नाथ जायसवाल
साहित्यिक उपनाम – सरल
पिता-स्व0 श्री चंदेले
माता -स्व0 श्रीमती सरस्वती
वर्तमान व स्थाई पता-
 ग्राम – सोहाँस
राज्य – उत्तर प्रदेश
शिक्षा – कला स्नातक , बीटीसी  ,बीएड।
कार्यक्षेत्र – शिक्षक (बेसिक शिक्षा)
विधा -गद्य, गीत, छंदमुक्त,कविता ।
 अन्य उपलब्धियां –  समाचारपत्र ‘दैनिक वर्तमान अंकुर ‘  में कुछ कविताएं प्रकाशित ।
लेखन उद्देश्य – स्वानुभव को कविता के माध्यम से जन जन तक पहुचाना , हिंदी साहित्य में अपना अंशदान करना एवं आत्म संतुष्टि हेतु लेखन ।

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