आमंत्रण मिलते ही थोड़ी दुविधा भी लगी कि चला जाय या दूरी ,सर्दी ,और समय की बाधाओं से हार कर यहीँ से सन्तुष्ट हो जाएं ।
आखिर अंदर से आवाज आई कि चलने पर कुछ तो नया मिलेगा ।यही सोच कर सब बाधाओं पर विजय करने का निश्चय किया ।
दो फ़रवरी रात्रि 10 बजे बूंदी से यात्रा प्रारम्भ की ।और विभिन्न यातायात के साधनों का प्रयोग करते हुए सवेरे 6.15 पर इंदौर की धरती के दर्शन हुए ।धुंध में लिपटी हुई इमारते और प्रातः काल में सूर्य का इंतजार करता इंदौर । ऐसे लगा जैसे मेरा भी कहीं न कहीँ इंतजार हो रहा होगा ।
सवेरे 7.25 पर ट्रैन से उतर इंदौर की धरती पर अलग ही अनुभूति के साथ पहला कदम रखा । गुलाबी सर्दी ने स्वागत करते हुए आगोश में ले लिया ।
कार्यक्रम 11.00 बजे शुरू होना था अतः प्रतीक्षालय में तरोताजा होकर इंदौर के FM स्टेशनों का आनन्द लेते हुए समय व्यतीत करने लगा।
प्रातः 9.00 बजे इंदौर के नजारों का लुत्फ़ लेने के लिये पैदल ही साउथ तुकोगंज के लिये यात्रा प्रारम्भ की ।
एक दो बार राह भटकने के बावजूद 10 बजे तक होटल साउथ एवेन्यू के भी दर्शन हो गए ।गार्ड से तस्दीक कर समारोह स्थल ग्राउंड हॉल में प्रवेश किया जहाँ माननीय कैलाश जी सिंघल और कैलाश जी मण्डलोई से प्रथम मुलाकात हुई ।जो कि जैसे इंतजार ही कर रहे हो उतनी गर्मजोशी से मिले ।
अंतरा शब्दशक्ति का बड़े से बैनर से मंच सजा था जिस पर 5….6 खाली कुर्सियांअतिथियों का इंतजार करती लगी ।मंच के सामने कुर्सियां अभी खाली ही थी पर मेजबानगण कार्यक्रम की तैयारियों में पुरे जोश से लगे हुए थे । सम्मानित होने वाले साहित्यकार घड़ी की सुइयां आगे बढ़ने के साथ ही अपनी उपस्थिति बढ़ाए जा रहे थे और सभी एक दूसरे से परिचय करते हुए पूर्व पहचान को पुनरस्मृत करते हुए सब अपने से और जाने पहचाने से लगे ।लेकिन प्रत्यक्ष उपस्थिति एक अलग ही अहसास करवा रही थी । सेल्फ़ियों का दौर अपनी रवानी पर था और हॉल पूरी तरह से फोटो सेसन का स्थल लग रहा था ।
थोड़ी देर पश्चात अतिथियों के पधारने के साथ ही राशि जी ने मंच सञ्चालन का मोर्चा सम्भाल लिया । सरस्वती दीप प्रज्वलन ,वन्दना के साथ कार्यक्रम का आगाज़ हुआ । सभी दिग्गज मंचासीन अतिथिगण कुर्सियों को सुशोभित करने लगे ।तभी राशि जी ने घोषणा की कि माननीय वेदप्रताप वैदिक जी को अपरिहार्य कारणों से शीघ्र जाना है इसी कारण से उनको उद्बोधन के लिये आमन्त्रित किया जा रहा है । माननीय वैदिक जी ने अपने उद्बोधन में हिंदी भाषा को महारानी पदवी से नवाज कर सभी भारतवासियों को हिंदी में ही हस्ताक्षर करने के अभियान को और अधिक गति देने का आह्वान किया । ततपश्चात मातृभाषा हिंदी का मूर्त रूप का अनावरण किया गया ।साथ ही अंतरा शब्द शक्ति संस्थान और मातृभाषा उन्नयन संस्थान की 9 पुस्तकों का विमोचन भी किया गया ।बीच बीच में कुछ तकनीकी गड़बड़ियों ने भी अपनी उपस्थिति का अहसास करवाया ।
कार्यक्रम के अगले चरण में भारत के कोने -कोने से आये हिंदी के समर्पित साहित्यकारों को अंतरा शब्द शक्ति सम्मान से सम्मानित करने का सिलसिला शुरू हुआ । सम्मानित सभी साहित्यकार सम्मान पाकर गौरवान्वित महसूस कर रहे थे ।
अंतरा शब्द शक्ति सम्मान के पश्चात मातृभाषा सारथी सम्मान भी प्रदान किए गए ।
मुझे भी इस कार्यक्रम में मातृभाषा सारथी सम्मान से सम्मानित होने पर गर्व की अनुभूति हुई ।
कार्यक्रम के बीच-बीच में बिजली की आँख मिचौली चलती रही और उसे राशि जी ने ‘काला टीका ‘ शब्दों से सम्बोधित कर उसे भी कार्यक्रम के सकारात्मक प्रतिफल से आशान्वित किया ।
सभी के सम्मानित होने के उपरान्त सामूहिक फ़ोटो सेसन का कार्य किया गया ।
अंत में उदर में मीठे-मीठे व्यंजनों को पहुँचाने का आनन्द लेते हुए सबने एक दूसरे की मीठी यादों को समेट कर जल्द ही दुबारा मिलने का वादा कर अपने अपने घरों को प्रस्थान कर गए ।