हज़ारों दर्दो-ग़म के दरम्यां हम थे जहाँ में अब कहाँ हैं कल कहाँ हम थे। अभी हालात से मज़बूर हैं लेकिन तुम्हारी जिंदगी की दास्ताँ हम थे। तुम्हारी बदज़ुबानी चुभ रही लेकिन तुम्हारे होठ पर सीरी जुबां हम थे। ये तख़्तों ताज दुनियाँ में भला कब तक मुहब्बत ज़ीस्त है […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा